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Wednesday, 28 January 2015

--मेरी बीवी की बड़े लंड की चुदास


प्यारे दोस्तो, मेरा नाम राजन है और मेरी उम्र 32 साल है।
वैसे तो मैं एक फाइनेंसियल कंपनी में पोर्टफोलियो मैंनेजर के पद पर काम करता हूँ।
हम मुंबई में रहते हैं और मेरी कंपनी का हेड ऑफिस दुबई में होने के कारण मुझे दुबई और दुनिया के कई बड़े शहरों में घूमने का मौका मिला है।
किस्मत से मुझे एक बहुत ही अच्छी, सुन्दर और सेक्सी बीवी मिली है, उसका नाम विभा है।
विभा और मेरी लव-मैरिज हुई है।
हालांकि हम दोनों की शादी को ना मेरे घर वाले और न ही विभा के घर वाले पसंद करते थे, इसलिए हमारी शादी को लेकर पहले से ही सबका विरोध था।
लेकिन फिर भी हम दोनों ने शादी कर ली।
विभा से मेरी पहली मुलाकात मेरे दोस्त की शादी में हुई थी। विभा को देखते ही मुझे उससे प्यार हुआ और कुछ दिनों बाद मैंने उसको प्रपोज़ किया।
आगे चल कर घर वालों के विरोध के बाद भी हम दोनों ने शादी कर ली और हम दोनों घर वालों से अलग रहने लगे।
हम मुंबई में एक 2 कमरे के फ्लैट में किराये पर रहते थे।
विभा 28 साल की एक सुन्दर महिला है। शायद हम पर हमारे माता-पिता की ही नाराज़गी का असर हो, लेकिन आज शादी के 4 साल बाद भी हमें कोई संतान नहीं हो सकी है।
हम दोनों ने हर मुमकिन इलाज कर लिया है।
हमारे सारे टेस्ट कर लिए लेकिन हर टेस्ट का परिणाम बताता रहा था कि न तो विभा में कोई दोष है और न ही मुझ में, लेकिन पिछले 3 महीनों से हम दोनों की दर्द भरी ज़िंदगी बदल गई।
मानो हमारी किस्मत कुछ ऐसा ही होने की राह देख रही थी।
इस दौरान मेरी मुलाकात रजनीश नाम के एक लड़के से हुई।
रजनीश 22 साल का लड़का था, उसके माँ-बाप नाँदेड़ में रहते थे।
रजनीश मुंबई में जॉब के लिए आया था।
एक दिन रात को मेरी गाड़ी बंद पड़ी थी और कुछ मदद मिलने की कोई गुंजायश नहीं थी, तब मुझे ये 22 साल का जवान लड़का रजनीश मिला।
रजनीश ने मेरी गाड़ी ठीक की, उसके बाद मेरी रजनीश से दोस्ती बढ़ी।
रजनीश एक स्मार्ट लड़का था वैसे तो वो रंग से सांवला था लेकिन रजनीश हर एक काम जानता था।
वैसे तो वो अकाउंट्स में स्नातक था, लेकिन वो प्लमबिंग, कार रिपेयरिंग, बिजली और इलेक्ट्रॉनिक सामान, लैपटॉप और कंप्यूटर आदि भी सुधारना जानता था।
मुझे वो दादा और विभा को भाभी कहता था।
हम दोनों उसको रजनीश ही कहते थे।
मैं और रजनीश हफ्ते में एक बार, किसी बार में बैठ कर ड्रिंक्स लेते थे।
एक दिन रजनीश मेरे घर आया था, हम बातचीत कर रहे थे, वहीं विभा भी बैठी थी।
बातचीत खत्म होने के बाद रजनीश ने मुझसे कहा- अच्छा दादा अब चलता हूँ।
विभा ने उसको कहा- रजनीश खाना ख़ाकर जाओ।
वैसे तो रजनीश रुकने वाला नहीं था लेकिन विभा ने उससे बहुत आग्रह किया, इसलिए उसको रुकना पड़ा।
फिर मैंने कहा- क्यों ना खाने से पहले एक-एक पैग हो जाए…
रजनीश ने मना किया पर मैंने जोर दिया किया तो वो बोला- दादा.. विभा भाभी के सामने?
मैंने कहा- अबे तू दारू पीता है.. ये क्या विभा नहीं जानती?
विभा बोली- मुझे कोई दिक्कत नहीं है। उसके हम दोनों ने ड्रिंक्स ली और खाना खाने के बाद रजनीश चला गया।
दो-चार दिनों बाद एक दिन सुबह-सुबह किसी बात को लेकर विभा बहुत गुस्सा थी।
मैं नींद से जगा ही था तभी विभा मुझ पर चिल्लाने लगी।
मैंने कहा- क्या हुआ?
विभा बोली- कितनी बार बोला है बाथरूम में बिजली की फिटिंग में कुछ दिक्कत है.. आज मुझे कितनी ज़ोर से बिजली का झटका लगा।
मैंने कहा- मैं आज ही इलेक्ट्रीशियन को बुलाता हूँ।
मैंने मोबाइल उठा कर इलेक्ट्रीशियन को कॉल किया लेकिन इलेक्ट्रीशियन उपलब्ध नहीं हुआ।
मैंने कहा- देखो विभा डार्लिंग 2-4 दिन संभाल कर इस्तेमाल करो फिर वो आएगा।
विभा भी मान गई, मैं ऑफिस चला गया।
उसी दिन मेरी रजनीश से बात हुई और उसको मैंने बताया कि विभा को आज सुबह बिजली का झटका लग गया।
रजनीश ने चौंक कर पूछा- अरे कैसे?
मैंने पूरी बात बताई, रजनीश बोला- अरे दादा मेरे होते हुए इलेक्ट्रीशियन की क्या ज़रूरत है..
मैंने कहा- नहीं.. ठीक है.. हो जाएगा..तुम तकलीफ़ मत करो।
रजनीश बोला- दादा मेरे होते हुए भाभी इलेक्ट्रिक शॉक खाए.. ये नहीं हो सकता.. आप कुछ मत बोलिए, मैं अभी घर पहुँचता हूँ, आप भी पहुँच जाइए।
मैंने कहा- यार मैं नहीं आ सकता, तुम जाओ ना.. विभा है घर पर.. मेरी एक जरूरी मीटिंग है।
रजनीश बोला- ठीक है दादा.. मैं जाता हूँ, आप कब तक पहुँचोगे?
मैंने कहा- मुझे शायद रात के 10 बज़ेंगे।
रजनीश बोला- ओके दादा…
रजनीश ने मेरे घर आने की तैयारी की लेकिन एक अलग सी खुशी उसके चेहरे पर आ रही थी… पता नहीं ये क्या था..
तकरीबन 3 बजे रजनीश मेरे घर पहुँच गया।
विभा ने दरवाजा खोला। उसने गुलाबी रंग का चूड़ीदार सूट पहना हुआ था।
विभा बोली- अरे रजनीश तुम?
रजनीश बोला- हाँ भाभी.. आपको कल शॉक लग गया और आपने मुझे बताया तक नहीं…
विभा कुछ नहीं बोली, रजनीश ने कहा- भाभी उसके लिए ही मैं आया हूँ। चलिए दिखाईए कहाँ दिक्कत है?
विभा रजनीश को बाथरूम में ले गई।
रजनीश ने कहा- भाभी एक टेबल मिलेगा या कुर्सी.. आप बता दीजिए मैं ले आऊँगा।
विभा बोली- नहीं.. मैं लाती हूँ ना..
लेकिन उससे पहले ही रजनीश ले आया।
रजनीश टेबल पर खड़ा हो गया और विभा रसोई में चली गई।
रजनीश अपना काम कर रहा था लेकिन बाथरूम का फर्श गीला होने के कारण टेबल डगमगाने लगी।
तभी रजनीश ने विभा को आवाज़ दी- विभा भाभी.. ज़रा ये टेबल पकड़ेंगी क्या.. बहुत हिल रही है।
विभा तुरन्त ही टेबल पकड़ने के लिए बाथरूम में आ गई और उसने टेबल पकड़ ली। रजनीश अपना काम कर रहा था, तभी उसकी नज़र नीचे विभा पर पड़ी।
विभा के सूट के गहरे गले से उसके मम्मों की दरार नज़र आ रही थी।
रजनीश की नज़र बार-बार वहां जाने लगी और उसकी पैन्ट में उसका लंड खड़ा होने लगा।
पैन्ट का आगे का हिस्सा उसके लौड़े के उठने के कारण फूलने लगा।
ये बात नीचे टेबल पकड़ कर खड़ी हुई विभा को समझ में आ गई।
रजनीश के खड़े होते हुए लंड का उभार विभा को अपने चेहरे के सामने ही पैन्ट के बाहर से दिख रहा था।
थोड़ी देर बाद उसको समझ में आया कि उसके दुपट्टा ना लेने कारण उसकी चूचियां का सिनेमा रजनीश को नज़र आ रहा है जिसके कारण रजनीश का लौड़ा खड़ा हो रहा है।
लेकिन उसको भी इसमें मज़ा आने लगा।
विभा भी जानना चाहती थी कि क्या रजनीश भी चूचियों से ही मस्त हो रहा है..
तो उसने यह बात जानने के लिए पूछा- रजनीश मैं अब जाऊँ क्या?
रजनीश बोला- अरे नहीं भाभी.. मैं गिर जाऊँगा।
विभा समझ गई कि लौंडा भी चूचियों से ही गरम हो गया है।
रजनीश का लंड और भी सख्त होने लगा और वो मंजर देख कर मेरी बीवी की चूत भी नीचे गीली होने लगी।
थोड़ी ही देर में रजनीश के पैन्ट पर लंड के ऊपर एक गीला धब्बा नज़र आने लगा।
विभा ये देख कर मन ही मन मुस्कुराने लगी।
रजनीश का लंड बहुत ही बड़ा था शायद 8″ लंबा और 2.5″ मोटा होगा।
उसके मुक़ाबले मेरा लंड बहुत ही छोटा था।
विभा भी यही सोच रही थी और उसके मम्मों की घाटी को देख कर रजनीश का लंड सख्त हो रहा है… ये सोच कर तो उसको बहुत ही मज़ा आने लगा।
रजनीश भी विभा के मम्मों का ऊपरी हिस्सा देख कर बहुत मस्त हो रहा था।
वो मन ही मन कहे रहा था- यार ये राजन मादरचोद बड़ा ही नसीब वाला है.. क्या आइटम पटाई है साले ने.. और ये भाभी भी बड़ा पटाखा है.. ऐसा लग रहा है साली की अभी इसी वक्त इसकी चुदाई करूँ।
अन्धेरा बढ़ने की वजह से अब काम करना मुश्किल हो गया था।
रजनीश बोला- भाभी पूरी लाइन बदलनी पड़ेगी.. आज मैं कामचलाऊ ठीक कर देता हूँ.. कल बदल दूँगा।
विभा बोली- ठीक है।
रजनीश नीचे आ गया और विभा ने रजनीश के लिए कटलेट्स बनाए थे। वो रसोई से एक प्लेट में कट्लेट लेकर आ गई।
रजनीश बोला- अरे भाभी इसकी क्या ज़रूरत थी।
विभा बोली- ख़ाकर तो देखो.. मेरे हाथों से बने हुए हैं।
रजनीश ने एक कट्लेट उठा कर चखा। विभा सचमुच बहुत ही बढ़िया कट्लेट्स बनाती थी।
रजनीश ने कहा- भाभी आज राजन दादा जल्दी आते तो मज़ा आ जाता।
विभा बोली- वो क्यूँ भला?
रजनीश बोला- इतने बढ़िया कटलेट्स के साथ और कुछ भी मिलता न..
विभा बोली- ओह्ह समझ गई… तो उस चीज़ के लिए राजन की क्या ज़रूरत है.. वो स्टॉक तो घर में ही रहता है, बोलिए क्या लेंगे आप?
रजनीश का मन तो कह रहा था कि विभा डार्लिंग तू ही इतनी नशीली है तू कपड़े उतार कर सामने खड़ी हो जा, पर प्रत्यक्ष में वो कहने लगा।
रजनीश बोला- भाभी आपको कोई ऐतराज़ तो नहीं है न?
विभा बोली- नहीं.. मुझे बिल्कुल भी दिक्कत नहीं है।
रजनीश बोला- ठीक है भाभी विहस्की ले आओ।
विभा विहस्की की एक बोतल लेकर आई रजनीश ने खुद पैग बनाया और फटाफट ख़त्म करके थोड़ी देर विभा से बात करते-करते वो बोला- विभा भाभी आप बहुत सुन्दर दिखती हैं।
विभा बोली- दारू पीने के बाद ही भाभी खूबसूरत लगने लगी, पहले तो कभी नहीं कहा।

Monday, 19 January 2015

--शिक्षिका निशा



नमस्कार मी निशा. मी एका माविद्यालयात शिक्षिका आहे. माजे वय २७ च्या घरात असून माजे आजून लग्न झाले नवते. माजे शिक्षण पूर्ण झाले आणि त्याचा काही वापर व्हावा म्हणून मी एका महाविद्यालयात शिक्षिका म्हणून काम पाहायला सुरुवात केली. तसे पहिले तर आमच्या महाविद्यालयाचे नियम कडक आहेत. म्हणून मी आम्हाला साडीत कॉलेज ला यावे लागायचे. साडीमध्ये माजे ३६ चे स्तन , २६ ची कंबर आणि ३८ चे ढुंगण मी झाकले जाईल याची नेहमी काळजी घेत असे. तशी मी दिसायला सावळीच आहे. पण चेहर्याचा आकार आणि ठेवण छान असल्या कारणाने मी सुंदर दिसत असे. तशी मी फारशी कडक स्वभावाची नाही. मला तसे राहायला आवडत हि नाही. पण मुल आणि मुलींसमोर तसे राहून कसे चालणार म्हणून मी कडक स्वभाव दाखवायाल सुरुवात केली होती. तसे सेक्स बद्दल मला कमी माहित होते.
चला तर आता तुम्हाला मजा अनुभव सांगते, मला आता या नोकरीत ६ महिने झाले होते. सुरुवातीला मला जो वर्ग देण्यात आला होता तो तसा कमी मुलांचा पण वाह्यात मुलांचा होता. मी गंभीर राहण्याचा नेहमी प्रयत्न करायचे. काही विनोदही होणार नाही याची काळजी मी नेहमी घ्यायची. मुलाची नजर माज्या आतल्या गोष्टींवर पडणार नाही याची काळजी मी नेहमी घ्यायची. आणि म्हणून साडी नेसातांना कमीत कमी अवयव दिसतील याची काळजी घ्यायची. पण साडीच्या बाजूने दिसणारे माजे पोट आणि आंबे हे लोकांसाठी आकर्षण असायचे. मी नेहमी त्यांच्याकडे दुर्लक्ष करायचे. परंतु एक दिवस मी ज्याचा वचारहि केला नवता ते झाले. ते दिवस पावसाळ्याचे होते. मला रात्री झोपायला उशीर झाला म्हणून मला सकाळी उशीरच जाग आली. माझे कॉलेज नेहमी ७.३० ला असायचे. पण त्या दिवशी मी ७ वा उठले. जेव्हा घड्याळात मी पहिले तेव्ह मला झटकाच लागला आणि आता लवकर आवरून पाळायचे येवाडेच माज्या डोक्यात होते. मी बाथरूम वरून लगेच अंघोळ करायला गेले. रात्री घातलेला मजा गाऊन मी पटकन काढला आणि पटकन नंगी झाली. रात्री मी ब्रा आणि चड्डी घालत नसल्याने ते काढण्याचे कष्ट माझे वाचले. मी पटकन गिजर मधेले गरम पाणी बादलीत सोडले. आणि तशीत नांगी उभी राहून बदली भरायची वाट पाहू लागली. दोन दिवसंपूर्वी स्वच्च केलेल्या माझ्या बुल्लीवरून हात फिरवत मी स्वतःला उशिरा उठल्याबद्दल शिव्या घालू लागले. तेवड्यात बदली भरली आणि मी तशीच नंगी मांडी घालून खाली बसले आणि पटापट सगळ्या अंगाला साबण लाऊन आंघोळ करायला सुरुवात केली. तसे मला कितीही उशीर झाला तरीही मी माज्या योनीला साबण लाऊन स्वच्च अंघोळ करत असते. पटापट अंघोळ करून मी तशीच ओल्या अंगाने उठले आणि मग माज्या लक्षात आले कि मी घायीत टोवेल आणला होता पण ब्रा आणि पँनटीच आणली नव्हती. मी विचार केला कि जाऊंदे असेही उशीर झाला आहे आणि रात्री जशी घालत नाही तशीच दिवसही घालणार नाही. असे म्हणून मी टोवेल अंगाला गुंडाळला आणि बाथरूम मधून बाहेर आली. बाहेर येताच ती थंड हवा माज्या टोवेल मधून घुसून माज्या पुच्चीशी खेळू लागली आणि मनुके उभे करून गेली. पण माज्याकडे रोमान्तिक व्हायला वेळ कुटे होता? मी पटकन माज्या रूम मधे गेली. घरात आई, बाबा, आणि भाऊ झोपले होते. कोणाच्या लक्षात येण्यागोदर मी माझ्या रूम मधे गेले. कपाटातून साडी आणि पेटीकोट काढला. पावसाला असल्याकारणाने माजे ब्रा आणि पँनटी ओले होते. मी शेवटी त्यांचा नाद सोडला आणि पटकन साडी नेसली. आणि पटकन घराबाहेर पडली. गाडीवरून जातांना गार हवेने माजे मनुके मोठे होत होते आणि जेवा खड्डा यायचा तेव्हा ते बिचारे आतून माज्या ब्लाउज ला घासायचे. माजी अवस्था तर दुर्लक्ष पण न होयेना आणि सोसवेना पण नाही अशी झाली होती. मी कॉलेज ला पोहोचाल. चांगलाच उशीर झाला होता. मी पटकन वर्गात जाण्याचा निर्णय घेतला. इतरवेळेस मी लेडीज रूम मधे जाऊन फ्रेश होते आणि मग वर्गात जाते. पण आज उशीर झाल्याकारणाने मी वर्गात गेली. बाहेरचा गारवा आणि हलकासा पाऊस यामुले मी थोडी विचित्र दिसत असणार असे मला जाणवले पण आज माज्यासाठी ते महत्वाचे नवते.
मी वर्गात गेले. आणि पाहते तर काय कि फक्त एकाच मुलगा आला आहे. मी एवढी धावत पळत काय फक्त या एका मुलासाठी आली आहे का? ओह. माज्या मनात विचार आला. ‘काय रे सुनील बाकीचे कुटे आहे?’ मी त्याला प्रश्न विचारला. ‘अहो मँडम पावसाळा आहे, म्हणून कोणी आलेले नाही. कदाचित आजून गोधडीत गरम होत असतील.’ त्याने माज्याकडे पाहत उत्तर दिले. ‘बर बर, आज पुढचे शिकू’ मी त्याच्या बोलण्याकडे दुर्लक्ष करत म्हणाले. ‘आज नको ना मँडम, आज आपण गप्पा मारुया.’ तो माज्या आंब्यांकडे पाहत म्हणाला, कदाचित मानुक्यांचा ताठरपणा साडीवरून दिसत होता. ‘अजिबात नाही, वर्गात काय गप्पा मारायला येतो का? पुस्तक उघड.’ मी ओरडले आणि थोडा उंच असलेल्या स्टेज वर जाऊन बसले. माज्यासमोर टेबले होता त्याच्या खालच्या दांडीवर मी पाय ठेवला आणि पुस्तक उघडण्यात मग्न झाले. मी त्याला शिकवत होती. तेवड्यात त्याचा पेन खाली पडला आणि तो खाली तो उचलायला वाकला. पेन उचलायला त्याला थोडा वेळ लागत होता. मी पुस्तकात वाचायची आणि त्याच्याकडे बघून त्याच्याशी बोलत होती. त्यने पेन उचलला आणि माज्याकडे लक्ष द्यायला लागल. पण थोड्या वेळाने त्याचा पेन परत पडला. मी रागावून त्यला म्हणाली कि ‘काय रे काय सारखा तुझा पेन खाली पडत आहे’ यावर तो म्हणाला कि काय करू मँडम त्या पेणचे लक्ष दुसरीकडेच आहे’. मला काय हे कळले नाही पण मी त्या कडे लक्ष न देता शिकवणे सुरु केले. थोड्यावेळाने मी त्याला एक प्रश्न दिला आणि सोडवायला सांगितला. मी त्या नंतर पुस्तकात पाहून वाचायला लागली. थोड्यावेळाने मला परत त्याचा पेन पडल्याचा आवाज आला. मी जेव्हा पुस्तकातून तिरक्या नजरेने पहिले तेव्हा तो जागेवर मला दिसला नाही. मी थोडे लक्ष दिल आणि मला तो बेंच च्या खालून माज्याकडे पाहत असतांना जाणवला. मला वाटले कि हा असा माज्याकडे का पाहत आहे. म्हणून मी थोडा विचार केला आणि माज्या पायातून डोक्यापर्यंत करंट बसला, ओह्ह नो हा तर साडी खालून माज्या मांड्याकडे पाहत आहे आणि मी नेमकी आज नीकर पण नाही घातली. काही क्षण मी जागीच गोठून गेली. काय करावे मला काही सुचत नवते. याचा मघापासून पडणारा पेन आणि त्याचा बोलण्याचा अर्थ माज्या लक्षात यायला लागल. म्हणजे हा मघापासून माज्या मांसल मांड्या बघत आहे. ओह्ह नाही. मी ताबडतोब टेबले च्या दंड्यावाचे माजे पाय खाली घ्यायला लागली पण माज्या मनात विचार आला कि जर मी असे केले तर याला कळेल कि मला याने माज्या मांड्या पहिल्या आहे आणि जर असे झाले तर हा घाण बोलून किंवा छेड काढून त्रासही देऊ शकतो. याला न काळता काही तरी केले पाहिजे. मी विचारांच्या भोवर्यात फसले होते. मी माज्या दोनीही मांड्या दाबून धरल्या होत्या. कारण मला त्याला आजून पुढे माजी योनी दाखवायची नावाती. मी पुस्तकाकडे पाहून काय करू असा विचार करू लागले. तो खालून माजी मांडी पाहत आहे आणि मी दुर्लक्ष करत आहे या विचाराने माजी हृदय जोरात ठोके मारत होते. साडीच्या त्या खालच्या भागात गार हवा सुद्धा वाहायल लागली होती. माज्या मनात कोणते भाव तयार होत आहे हेच मला काळात नवते. एका बाजूंला हवेचा तिथे होणारा स्पर्श आणि दुसरीकडे मजा विद्यार्थी माज्या मांड्या पाहत आहे. काय करू तेच काळात नवते. तेवढ्यात माज्या विचारांची साखळी तुटली आणि मला अचानक पायावर काहीतरी वळवळत असलेले जाणवले. मी घाबरले. मला वाटले कि झुरळ किंवा कोणता किडा तर साडीत तर नाही ना घुसला, आणि जार तसे झाले तर मला काहीच करता येणार नाही,’ म्हणून मी पटकन टेबलाखाली लक्ष दिले. आणि मी जे पहिले त्याने तर माजे तोंडचे पाणीच पाळले. तो किडा नसून सुनीलचा स्पर्श होता. तो त्याच्या जागेवरून माज्या टेबले खाली आला होता आणि साडीच्या खालून मांडीवर स्पर्श करत होता. आणि त्यापेक्षाही भयंकर म्हणजे मी आत्ता पर्यंत त्याला दिसू नये म्हणून माया मांड्या दाबून धरल्या होत्या त्या आता भीतीने आणि हालचालीने अचानक उघडल्या गेल्या होत्या. आणि जे नको तेच झाले. पाय उघडले गेल्याने माजी चमकत असलेली, २ दिवसांपूर्वी केस काढलेली, फुगीर, योनी उघडी झाली होती. तिची गुलाबी चीर त्याच्या समोर होती. पाय उघडल्या गेल्याने तो साडीच्या आजून आत शिरला. आता तर मी पाय बंद पण करू शकत नवते. मी अडकले होते. उभे राहणे पण अवघड होते कारण समोर टेबले होता. आग आई मी आता काय करू. मी मनातल्या मनात म्हणू लागले. मी आज नीकर का नाही घातली म्हणून स्वतःला बोलू लागले. इकडे माजी चीर पाहून त्याच्या तोंडाला पाणी सुटू लागले होते. मी घाबरले होते. ‘सुनील बाहेर हो, असे नको करू प्लीज’ मी घाबरलेल्या आवाजात म्हणू लागली. पण तो काहीच बोलला नाही. आणि साडीत पुढे सरकू लागल. मी साडीवरूनच त्याचे डोके ढकलायला लागली. पण ते अवघड जात होते, साडी सिल्क ची असल्याकारणाने त्याचे दोने माज्या हातातून सरकत होते. मला काळात नवते मी काय करू

Sunday, 18 January 2015

--ढाबा

मी माझ्या ओम्नी व्हॅनने प्रवास करताना दुपारच्या जेवणाला एक ढाबा शोधत होतो. एका फाट्याच्या पानाच्या टपरिवर विचारले तेव्हा कळले जवळच एका भल्या मोठ्या लिंबाच्या झाडाखाली सावलीचा आधार घेत एक छोटासा सत्याचा ढाबा अशी पाटी आहे. तिथे गरम झुणका भाकर मिळेल, बाकी मटन, कोंबडी वगैरे पण आहे. ती जागा मला सापडली, मी तिथे थांबलो. ढाबा म्हणजे रस्त्याला पाठ करुन एक अंधारी झोपडी होती. झोपडीच्या ओट्यावर चुल व स्वैपाकाचे सामान होते. झाडा खाली दोन खाटा ठेवल्या होत्या त्यातल्या एका खाटेवर मी आरमात आडवा झालो. त्या अंधार्*या झोपडीतुन खूपच मादक आवाज आला "साह्येब, कडक सरबत का लींबु पानी घेणार?" माझ्या काना वर विश्वास बसेना. " कडक काय आहे?" "साह्येब, संत्र्याची हाय, रम हाय तसेच बिर बी हाय" त्या झोपडीत हे सगळे होते ह्याचे मला नवल वाटले. "थंड असेल तर बीअर नाहीतर दोन पेग रम पेप्सी बरोबर, पण पेप्सी थंड आहे का?"
"बीर एकदम चील आहे बघा" म्हणत ३० - ३५ वर्षाची बाई हातात बिअरची बाटली घेउन झोपडीतून बाहेर आली. जंगलात झाडे तोडणार्*या कातरी बायका असतात तशी ती होती. गुढग्यापर्यंतची घट्ट साडी, तिने नेसली होती. कंबरेला पदर असा खोचलेला होता की पोटाच्या खळग्यातली भली मोठी बेंबी लक्ष वेधणारी होती. छातीला चोळी नव्हती पण घट्ट भरलेले स्तनगोळे पदराने झाकलेले होते. पदरामागे लपलेले नीपल ताठरलेले दिसत होते. तोंडातल्या वीड्याने ओठ लाल रसरशीत दिसत होते. काजळ घातलेले मोठाले काळे डोळे फारच मादक होते. लांब केसांचा बुचडा बांधलेला होता त्यात रानटी फुले फारच आकर्षक होती.
"अहो साह्येब बीर गरम होईल, चालल का? कसला इचार करता हाय? हा रस पाहीजे असेल तर त्यो पण मिळल" असे म्हणत तीने तीचे नीपल पदरावरूनच चोळून दाखवले. "साह्येब आधी मी जेवण बनवते मग येळ असेल, जमेल तसे, काय काय हव ते सांगा." काय काय मीळणार ह्या कल्पनेनेच माझ्या भुका वाढल्या.
दोन दिवस कामामूळे शरीराची भुक विसरावी लागली होती.पण मला आधी जेवायलाच हवे होते. पण जेवणानंतर स्वीट डीश म्हणून झवणे पण हवे होते. केव्हा एकदाचे जेवण संपवतो व ही मादक नशीली स्वीट डीश खातो असे झाले होते. "साह्येब फार घाई असल तर झुणका भाकर लवकर तयार करते, पन कोंबडी, भाजी, भात समध पाहीजे असल तर बराच येळ खाईल, सांगा तुम्हाला काय पहीजेल हाय?" "मला ही गावरान झुणका भाकरच हवी आहे. छान कांदा, लसूण व कडीपत्त्याची फोडणी आहाहा भूक वाढली बघा." असे मी म्हणत होतो तेव्हा ती तोंडाला हात लावून म्हणते "अग बया, दिसल, कीती भुकेला झालात ते, बघा तुमच्या त्या अर्ध्या चड्डीतले ते लाल डोक पाहून माझी पण भुक वाढली हाय." माझे लक्ष माझ्या सुंथा केलेल्या लाल मण्या कडे गेले. ताठ होऊन बाहेर आलेल्या लवड्यातून लाळ गळायला सुरु झाले होते.
ती समोरच्या ओट्यावर बसून कामाला लागली होती. मी तीच्या मागे जाऊन उभा राहिलो. तीचे भक्कम गांडगोळे घट्ट / सैल होत होते. तिच्या साडीच्या काष्ट्या मुळे दोन्ही गांडगोळे वेगळे झाले होते. फारच मादक दिसत होते. मला शंका आली म्हणून मी तिच्या समोर गेलो. तीचा काष्टा चुतला घट्ट चिकटला होता व ती डोळे मीटून तीची चुत पायात ठेवलेल्या दगडावर घासत होती. तिला माझी चाहूल लागली म्हणून तीने माझ्या कडे पाहात "साह्येब तुमच ते मुसळ जरा चड्डी बाजूला करून दाखवा की" माझ्या ताठ झालेल्या लवड्याला बघत बघत तीने डोळे मीटले, मान मागे नेली, ती झडणार हे जाणवले म्हणून मी तीच्या मागे गेलो, लवडा बाहेर काढला व काष्ट्याच्या आत घातला, तीने लगेच गांडगोळ्यात लवडा घट्ट धरून दाबायला सुरु केले. मी पाठीमागूनच तीच्या पदरात पटकन हात घातले व दोन्ही नीपल चांगले चोळायला सुरु केले.
"ए माय अग बघ, तुझी पोर न झवताच झडते आहे" असे म्हणत ती खूप थरारली व झडली. तिच्या गांड्गोळ्यांनी माझ्या लवड्याला असे काही दाबले की मी तीच्या काष्ट्यातच चिक सोडला. मी पण झडलो. जरा वेळ एकमेकाच्या मीठीत होतो. कुठूनसा मोबाईलचा आवाज आला म्हणून ती भानावर आली. उठून खोलीत गेली. "अर भाकरी बनवीत होती, वेळ लागला, हो साह्येब पोचले हाएत, खाटेवर आराम करताहेत." ती झोपडीतून बाहेर आली "सत्त्या व्हता, माझा दोस्ताना हाय, तुम्हाला ढाबा गावला की नाही इचारीत होता." तीने पटकन तीन जाड भाकर्*या शेकल्या आम्ही दोघे जेवलो. त्या गरम झुणका भाकरने पोट भरल्या सारखे झाले. आता शरीराची भूक वाढली. व्हॅन रस्त्त्यापासून अजून थोडी आत नेली. व्हॅनच्या मागच्या काचा गडद असल्याने कोणी बघेल ह्याची भिती नव्हती. मी तीला व्हॅनच्या मागच्या भागात खेचले व व्हॅन नीट बंद केली.
तीने रोजच्या सरावाप्रमाणे साडीची गाठ सोडली. ती साडी नुसतीच गुंढाळलेली असल्याने ति एकदम नागडी झाली. मी दोन्ही खुर्च्या बंद केल्या व झोपायला जागा केली. मी तिच्या नागड्या शरीराला पीत होतो. तिचे रसाळ आंब्या सारखे असलेले स्तन फारच मोहक होते. त्यावर काळेभोर कडक ताठरलेले निपल चोखण्या करता तयार झाले होते. तिला दिवसात दहा जणा कडून आडवे पडून चोदून, ठोकून घ्यायची सवय होती असे दिसत होते. तीची साफ गोटा केलेली चुत तीने पाय फाकवून दाखवली, बोटे तोंडात घालून ओली केली व आधी चुतमण्यावर चोळली मग दोन बोटे चुत मध्ये सरकवून त्या बोटांनी चोदायला सुरु केले. मी तिच्या नीपलला सावकाश कुरवाळल्यावर, चोखल्यावर तिने डोळे बंद केले होते. तीने तिचा दुसरा हात माझ्या चड्डीत घातला व लवडा बाहेर ओढला "साह्येब चड्डी काढाना, मला नागडे होऊन झवायला लई आवडते. असे कपड्यासकट म्हणजे मुतायला बसल्या सारख हाय. असे मुतून जाणारे झवाडे मला त्रास देउन जातात. पैशा करता करावे लागते. पण कधीतरी तुमच्या सारखे दर्दी झवणारे येतात मग झवण्याचे सुख मिळते, आनंद मिळतो."
मी कपडे काढले, नागडा झालो, तिचे एका हाताने चुत चोळणे सुरु होते. दुसर्*या हाताने तीने माझे आंडगोळे सावकाश कुरवाळले. "अगबया. हे आंडगोळे चिकाने बघा कीती जड झाले हाय, रिकामे करणारी कोणी गावली न्हाय काय? मी आता हलके करून देते. तुम्ही मला झवणार का मी वर चढून तुम्हाला ह्या चुतमधे ठासून घेवू?"
"मला सांग तुझ नाव काय? तू ह्या झोपडीत राहून हे चुतला गोटा करायचे, वर चढून चोदायचे कुठे बघीतले?" ह्या नागड्या अनुभवी, मादक बाईने माझे कुतुहूल वाढवले होते.
"ते म्या नंतर सांगेन पण आधी जमल तेवढे झवत बसू मग निवांत बोलू" असे म्हणत तीने मला खाली झोपवले. ती माझ्या वर बायका मुतायला बसतात तशी बसली. लवड्याचा मणी तिच्या चुतदाण्यावर चोळत तीने चुतमध्ये घुसवला. माझे दोन्ही हात तीने तिच्या स्तनावर धरले व निपल कुस्करायला सांगीतले. मी माझा लवडा तिच्या चुत मध्ये आत बाहेर करत होता ते बघत होतो. तीचा चुतदाणा लहान मुलाच्या नुन्नी सारखा बाहेर आलेला होता. मधून मधून ती त्या दाण्याला कुस्करत होती. मी पण तो दाणा कुसकरून बघीतला. तीला ते आवडले "असेच सावकाश चोळा, ए मामामाय, बघ माझा दाणा कसा नाचतोय" असे म्हणत तिने तिच्या चोदण्याचा जोर वाढवला. "साह्येब एका हाताने माझ्या थान्याची बोंडी चोळा व एका हाताने हा दाणा चोळा, तुम्हाला झवतांना लई आनंद होतो हाय, काहो लवडा जरा ढीला पडला काय?" म्हणत ती लवड्या वरून उठली व फक्त मणी दोंडात घेउन छान चोखला, माझ्या आंडगोळ्याना तीने थोडे कुसकरले. लवडा फडफडला, त्याला तीने जोरकस मूठ मारून अजून थोडा ताणला आणि चुतला लावला, एक जोरकस धक्का देत आत ठोसून घेतला. मी पुन: नीपल व चुतमण्याला चोळणे सुरु केले. थोड्या जोरकस धक्क्यात ती जोरात थरारली व झडली. माझ्या अंगावर पडून होती.
ती माझ्या वरून खाली उतरली घुडगे छाती जवळ घेत तिने चुत उघडी केली " साह्येब ठोसा तुमचे मुसळ ह्या उखळात, चांगल जोर लावून झवा, दोन महिने झाले ही चुत अशा झवण्याला भुकेली झाली होती." मी लवडा सावकाश घासत तिच्या चुतमध्ये सगळीकडे फिरवला व मणी चुतच्या दोंडा पर्यंत बाहेर काढून जोरात धक्का मारून आत ठोसला, "ए माय ह्या रेड्याने बघ माझी आज चुत फाडली, ए मुसळ्या कूठे व्हतास इतके दिवस, हे उखळ असेच जोर लावून कुटून टाक. लई आनंद देतोस बघ." मी माझा चोदण्याचा वेग वाढवला. तीचे बोंलणे चालू होते, मी वरून तीला ठोकत होतो. शेवटी मी जोर लावून झडलो. सगळा चीक चुतमध्ये धक्के देत रिकामा केला. "बया बया कीती चीक रिकामा केला, माझ्या उखळात एवढि जागा न्हाय. तीने पाय सरळ केले मी तीच्या वर तसाच पडून होतो अजून लवडा ताठ होता, मधून मधून धक्के देत होतो. तीने एकदम चुत मागे ओढली, व जोर लावून घट्ट दाबली तसा पचकन आवाज आला. तंबाखूची पीक टाकावी तशी माझ्या चीकाची पीक तीने तीच्या चुत मधून बाहेर टाकली, "बघा तुमचा चीक ह्या उखळात मावेना." मला ती चीकाची पीक टाकणे खूप आवडले. मी तीचा मुका घेतला. तीने खाली वाकून तोंडाने माझा लवडा चोखून साफ केला. मी व्हॅनचे दार उघडले. बाहेरच्या प्रकाशात तीची चोदलेली चुतचमकत होती. मी पटकन खाली वाकून तीचा चुत दाणा माझ्या ओठात पकडला व चोखला. ती एकदम शहारली, माझे डोके तीने घट्ट धरुन माझ्या तोंडावर दोन
जोरकस चोदल्यासारखे धक्के दिले.

--वहिदा

वहिदा मधल्या काळात दुबईला जाऊन आली. पण आल्यापासुन तिची माझी एकदाही भेट वा निट बोलणही झालं नाही. एरवी आम्ही रोज भेटणारे किमान एक तर किस घेतल्याशिवाय न झोपणारे पण या वेळेस हे सगळं थांबलं होतं. दुबईवरुन येताना तिच्या सोबत नणंद व सासु आली होती. तरी अधे मधे एखादा समस किंवा फोन व्हायचाच पण तिचं चुंबन घेतल्याला बरेच दिवस उलटले होते.
मी रोजच्या सारखं सायंकाळी ८ वाजता एक रम चा खंबा घेऊन घरी आलो. वहिदा तर सासु असेपर्यंत हाती लागणार नव्हतीच. दोन चार निळे सिनेमे आणले होते. रमचा पेला भरला, निळा सिनेमा चालु करुन मस्तपैकी वहिदाच्या स्वप्नात रंगुन रमचा एक एक घोट रिचवत होतो.
एक दीड तासापासुन हे चालु होतं. बाहेरच्या दाराव कुणीतरी बेल वाजविली. जाऊन बघतो काय तरी वहिदा. दार उघडुन मेनाचा पुतळा निरखत होतो.....
“क्यु, क्या चल रहा है.......?”
“कुछ नही डार्लिंग, तेरी याद मे तारे गिणके खतम हुए अब समंदरकी बारी है”
वहिदा दारातच..
आज कैसे क्या रास्ता भटक गयी....
तीनी या प्रश्नाचं उत्तर न देता माझ्या गळ्यात हात घालत माझ्या घराचं दार लोटलं. माझ्या मानेत हात घालुन तीचे दोन्ही ओठ माझ्या ओठांवर ठेवले. मी तीच्या कमरेत हात घातला. जवळ ओढुन ओठांचा चावा घेतला.
दारुची झिंग तिच्यापुढे फिकी पडली. आता खरी झिंग चधत होती.
सांसु मा.....?
वो आजही दिल्ली गयी, बच्चे भी साथ गये, दो दिनमे मै भी जाऊंगी दो हप्तो के लिये.
हे सगळं बोलनं चालु असताना मी तीच्या पोलक्याचे हुक सोडवत होतो, ती माझ्या पॅंटमधे हात घालुन बाबुराव हातात धरला होताच.
तीचे दोन्ही स्तन आता माझ्या जिभेला आस्वाद देत होते. आता बाबुराव अधिक कडक होऊ लागला. मी आपला उभाच तिचे स्तन तोंडात घेऊन खेळत होतो. न रहावुन ती थोडंसं माग सरकली. दोन्ही गुडघ्यांवर बसुन बाबुराव हातानी जवळ ओढला. तीनी स्वत:च माझा बाबुराव तोंडात कोंबुन घेतला होता. मी मात्र आता तीच्या तोंडाला झवत होतो. प्रत्येक स्टोकनी तीची थोडी मागे ढकलली जात होती. पण तीला बाबुराव चघडण्यात स्वर्गसुख मिळे. दहाएक मिनटं तोंडाची झवाझवी झाल्यावर तीला उचलुन सरळ बेडरुमधे नेलं. बेडवर सरळ झोपवुन तीचे दोन्ही पाय फाकविले. आज बोट टाकण्यात वेळ दवडायची इच्छा होत नव्हती. कारण बरयाच दिवसानी वहिदा नागडी होऊन माझ्या बेडवर पडली होती. सरळ आपला बाबुराव तीच्या योनीवर ठेवला. आता घुसडण्याआधी दोन तीन वेळा योनीवर नुसताच कडक कडक बाबुराव घासु लागलो. बाबुरावच्या घर्षणानी बयो चित्कारु लागली. शेवटी एकदाचं बाबुराव तीच्या भोकात जोरात घुसडवुन दिला. वहिदा किंचाळली.
आज माझा बाबुराव आता तीचा पोचा फाडत आता बाहेर होत होता. ती प्रत्येक स्टोकवर एक आनंदाचा चित्कार सोडुन मला स्ट्रोक जोरात मारायला भाग पाडत होती. तीचे दोन्ही स्तन हातानी घट्ट दाबुन धरले व खाली तीची भोकात बाबुराव घुसडत होता. उजव्या हाताचा बोट तीच्या तोंडात दिला. ती आता बोट चोखत होती व खाली स्ट्रोक चालु होते. हे दाहेक मिनिट चाललं व एकदाचं भोकात फव्वारा सोडला. तीच्या अंगावर पडुन पाच दहा मिनटं नुसती चाटाचाटी केली व एक राऊंड संपला.
दोघेही बाधरुममधे जाऊन धुवुन पुसुन परत बेडरुममधे आलो, आज कपडे घालायचे नव्हतेच. रमच्या बाटलीकदे हात करुन काय आहे असं विचरलं.
मी लगेच तीला तसच उचलुन हॉल मधे नेलं व रमचा एक पॅक भरला.
“ये रम है, इसे पिनेसे चुदाईमे और मजा आयेगा, चल वहिदा एक घुट मार”
-नही मुझे दारु पिने की आदत नही है.
-कुछ नहि होता यार, पिके तो देख.
-नही, तुम पिओ, मै बैठती हु.
कसलं, बैठती हु, एक तर ती माझ्यापुढे नागडी वरुन तीचे दोन्ही आंबे मधे मधे तोंडात घेताना माझा बाबुराव परत उसळ मारायचा. मी माझा ग्लास फुल भरला, वहिदाला मांडीवर घेऊन तीच्या ओठाचं चुंबन चालु केलं.
आता आम्ही दोघेही विवस्त्र सोफ्यावर बसुन मनसोक्त एक मेकाच्या शरीराशी खेळत होतो. वहिदा माझ्या मांडीवर बसुन आपले आंबे माझ्या तोंडात देत होती. मी दोन्ही हात तीच्या गांडीला विळखा घालुन धरले होते. एक बोट तीच्या गांडीच्या भोकात घुसडुन आत बाहेर करु लागलो. गांडीत बोट घुसडल्यावर वहिदा चित्कारत होती.
-अरे उसमे उंगली मत घुसाव, दर्द होता है
-लेकिन मुझे तुम्हारी गांड बडी अच्छी लगती है.
-तो उसमे उंगली थोडी ना घुसाते. मुझे दर्द होता है, प्ली...ज. उगंली बाहर निकालो.
पण मी तीच काहीच ऐकणार नव्हतो. एक बोट पुरेसा वाट्त नव्हता, कारण बोट घुसडल्यावर तीच्या अंगात विज धावत होती. मी आता दोन बोटं गांडीत घुसडवीली.
प्लीज, रवी.... अब बहोत दर्द हो रहा है. अपनी उंगलीया निकालो, चाहे तो मेरी चुद फाड डालो. मै आपका लौडा चुसुंगी, प्लीज मुझे लौडा दो.
वहिदानी वाकुन माझा बाबुराव तोंडात घेतला. मी तिच्या गांडिवरुन आपले दोन्ही हात फिरवु लागलो. तीचा श्वास कोंडला जात होता तरी बाबुरावला तोंडातुन बाहेर न काढता मुहचुदाई चालु होती.
तीची जीभ माझ्या बाबुराववरुन फिरु लागली, मी मात्र आपला रमचा ग्लास उचलुन तोंडाला लावला. वहिदाच्या तोंडात बाबुराव, माझ्या तोंडात रमचा पेला. ती फुत्कारत होती, दोन्ही हातात बाबुराव धरुन खेळत होती. मी वाकुन तिचे आंबे धरले, उचलुन मांडिवर बसवल अन रमचा ग्लास तीच्या ओठाला लावला.
-नही मुझे नहि पिना..
- अरे मजा आयेगा... पिके के तो देख.
- नहि.....
तीच नही अन माझं पि..... यामधे मी तीच्या अंगावर रमचा ग्लास रिचवला. सगळा अंग रमनी भरलं. मी वहिदाच्या मानेवर पडलेली रम चाटु लागलो. वहिदा उसासे टाकत होती.
तीचे दोन्ही आंबे दोन हातात घेऊन स्तनावरील रम चाटण्याचा आनंद घेताना वहिदा मात्र माझा बाबुराव हातात घेऊन खेळु लागली.
शेवटी उठुन आजुन एक ग्लास भरला व वहिदाच्या तोंडाला लावला. आता मात्र तिचा विरोध कमी झाला. दोघेही आळी पाळीने एक एक घोट पिट अंगाचे चाळे करत बेडवर पडलो.
अर्धातास रमचे सीप मारत एकमेकांना वेटोळे मारुन झाले, आता परत बाबुराव टाईट झाला.
वहिदा माझ्या आंगावर बसली, बाबुराव हाथात घेतला व तीच्या भोकात घातला. आता वहिदा माझ्यावर बसुन झवुन घेत होती. मी खालुन धक्के देऊ लागलो. वहिदा जोर जोरात उसासे टाकायची अण स्ट्रोकही मारु लागली. दहा मिनटात थकुन ती आडवी झाली.
आता मी तिच्यावर चढुन झव झव झवु लागलो. शेवटी फवारा सोडला. तीच्या मांड्यावरुन लोट वाहु लागले. तीच्या अंगावर पडुन घामाच्या धारानी चिंब झालेले दोन शरीर एकमेकाना घट मिठीत धरुन शांत झाले.
आज पासुन पुढचे दोन दिवस-रात्र सतत नुसतं दारु व झावाडकी चालु होती.

Friday, 16 January 2015

--वहिनी आणि मी



माझं नुकतच लग्न झालं. मला सुस्वरूप पत्नी मिळाली. राणी तिचं नांव. माझा नव्या नवलाईचा संसार बहरत असतांना एका प्रणयाच्या रात्री माझ्या राणीने विचारले, ‘राजन, मी आज माझ्या मैत्रीणीकडे बाजूच्या मोहल्ल्यात गेली होती. तेथे तिच्या मुलीच्या सोबत बाजूची एक लहानशी मुलगी खेळत होती. ती अगदी तुमच्या चेहर्‍या सारखी सुंदर दिसत होती. मी तिच्याकडे सारखी निरखून पाहत असतांना माझी मैत्रीण मला म्हणाली. “अग, ही तुझ्याच नवर्‍या पासून झालेली मुलगी आहे... म्हणजे अशी चर्चा आहे. खरं काय नी खोटं काय मला नक्की माहीत नाही.” पण तिचं हे बोलणं ऐकून मी चक्रावूनच गेली. हे कसं शक्य आहे ? मी दिवसभर सारखा तोच विचार करीत आहे. तुम्हाला पहिली बायको तर नाही ना किवा तुमचं कुणाशी काही प्रेमप्रकरण तर नाही ना, अशा शंका-कुशंकांनी माझं मन अस्वस्थ झालं. “नाही ग राणी, तसं काही नाही. पण एक घटना मात्र घडून गेली. मी त्यात कसा गोवला गेलो, ते मला कळलेच नाही.” एक उसासा टाकून मी बोललो. “काय घडलं सांगा ना... मला उत्सुकता लागली.” राणी म्हणाली. “सांगतो ना... काय झाले ते...” मग त्या प्रसंगाच्या आठवणींचा चित्रपट माझ्या डोळ्यासमोर सरकू लागला. मला कॉलेजमध्ये प्राध्यापकाची नोकरी मिळाली. मी नोकरीवर हजर होण्यासाठी या शहरात आलो. राहण्यासाठी भाड्याचं घर पाहिलं. अनायसे एक रुम-किचन असलेली खोली मला भाड्याने मिळाली. घरमालक दुसर्‍या जवळच्या शहरात नोकरीला होता. तो रोज जाणे-येणे करायचा. सकाळी आठ वाजता जायचा व रात्री आठ वाजेपर्यंत घरी यायचा. त्याची बायको मग दिवसभर एकटीच घरी राहत होती. मी तिला वहिनी म्हणत होतो, तर ती मला भाउजी म्हणायची. असं आमचं दोघांचं दीर-भावजयीच नातं होतं. या नात्याने ती कधीकधी प्रसंगानुरूप माझी तथ्ठामस्करी पण करायची. ती तिचा नवरा गेला की, ती मुद्दामच माझ्या समोर किवा माझ्या खोलीत कोणत्यातरी निमित्ताने यायची. माझे कॉलेज सकाळी ११ वाजता असल्याने मला दोन-तीन तास तरी कॉलेजला जायला वेळ असायचा. मी घरीच जेवण बनवित होतो. कधी कधी ती मला तिने बनवलेली भाजी आणून द्यायची. तिच्या भाजीला खरोखरच चव होती. मला आवडायची. मग येतांना एखाद्यावेळी तिच्या साडीचा पदर खाली सरकलेला दिसायचा. मग तिच्या छातीचे ते उभार भाग मला स्पष्टपणे दिसायचे. तेव्हा मी कमालीचा कामवासनेने उत्तेजित व्हायचा. त्यांची बायको तशी दिसायला साधारण म्हणजे थोडी सावळ्या वर्णाची होती, पण नाकी डोळी तरतरीत होती. चेहरा आकर्षक होता. एकदम सेक्सी होती. तिचं वय साधारण २५-२६ वर्षांचे असेल. जेव्हा जेव्हा ती माझ्या समोर यायची, तेव्हा तेव्हा माझ्या मनात तिच्याविषयी लैंगिक भावना जागृत होत होत्या. तिचे केस काळेभोर आणि लांब होते जे तिच्या नितंबाच्या खाली पोहचत होते. लग्न होवून १० वर्षे होवूनही तिची जवानी ढळलेली दिसत नव्हती. तिचे चमकणारे तेज व काळे डोळे, सरळ नाक मला नेहमीच भुरळ पाडत असे. ती खरोखरच मादक दिसत होती. तिचे उरोज मोठे आणि भरदार दिसत होते. एकदा मी असाच खोलीत स्वयंपाक करीत होतो. तिने मला काहीतरी खायला आणले. मी उठून तिच्या जवळचे भांडे घेऊन टेबलावर ठेवले आणि मागे वळलो तर ती खाली पडत असल्याचे मला दिसले. मी क्षणात तिला पकडले. तेव्हा तिच्या छातीवरचे स्तन माझ्या दोन्हीही हातात अलगद आले. “काय झाले, वहिनी ?’ मी त्याच अवस्थेत तिला म्हणालो. “काही नाही भाउजी, चक्कर आल्यासारखे वाटले. बरे झाले तुम्ही धरले. नाहीतर तर मी खाली पडली असती.” ती माझ्या डोळ्यात डोळे घालून बोलली. तिच्या मादक शरीराचे स्पर्शसुख पहिल्यांदा मी अनुभवत होतो. तिच्या छातीवरील स्तनाचा फुगीर भाग माझ्या दोन्ही हातात असतांना तिचा काहीच प्रतिकार दिसत नव्हता. त्यामुळे तिने मुद्दाम पडण्याचे नाटक केले असावे, असे माझ्या लक्षात आले. मी हात सोडण्याचा प्रयत्न करीत होतो. पण तीने माझ्या हातावर हात ठेऊन ती मला हात सोडू देत नव्हती. मग मीही तिचे उभारलेले स्तन दाबण्यात मजा घेऊ लागलो. मी तिला विचारले. “काय विचार दिसते, वहिनी ?’ ती म्हणाली, “तुम्ही मला खूप आवडता भाउजी... असंच तुमच्या मिठीत राहावे असे मला खूप वाटते.” मग तिने माझ्याकडे मान वळवली. हीच संधी साधून मी माझे ओठ तिच्या गालावर नकळत टेकवले. मी तिच्या गालाचे हळुवार चुंबन घेतले. मग तिच्या ओठावर ओठ टेकवले. त्यावेळी माझे सर्वांग शहारले. एखाद्या स्त्रीच्या ओठाचे अशाप्रकारे चुंबन घेण्याची ही माझी पहिलीच वेळ होती. त्यामुळे माझ्या अंगात जबरदस्त विजेचा प्रवाह खेळत आहे, असं काहीतरी होत असल्याचे मला भासत होते. माझ्या पैजाम्यातील लवडा मोठा होवून थाड्थाड उडत होता. त्यातून गरम गरम वाफा बाहेर पडत असल्यासारखे वाटत होते. माझी कॉलेजची वेळ झाल्याने मी तिला म्हटले, “बस, वहिनी. आता ऐवढेच. बाकी आपण कधीतरी करू. मला आता कॉलेजला जायची तयारी करायला पाहिजे. नाहीतर उशीर होईल.” मग मी तिची मिठी सोडली. तिने पण नाखुशीनेच मला सोडले. माझ्याकडे कटाक्ष टाकून माझ्या खोलीच्या बाहेर पडली. तिच्या त्या मादक नजरेने मी पुरता घायाळ झालो होतो. त्या दिवशी व रात्री मला त्याच क्षणाची राहून राहून आठवण येत होती. दुसर्‍या दिवशी सकाळी ती परत माझ्या खोलीत आली. त्यावेळी मी कोलेजला जाण्यासाठी कपडे घालीत होतो. ती आताही काहीतरी भांड्यात घेऊन आली होती. ती मोठी खुषीत दिसली. मला म्हणाली, “माझा नवरा ऑफिसच्या ट्रेनिंगसाठी बाहेर गावला गेलेत. आता ते पंधरा दिवस येणार नाहीत. तेव्हा तुम्ही आज रात्रीला माझ्याकडेच जेवायला या.” “हो. येईन ना... नक्कीच येईन...” मी म्हणालो. मी कॉलेजला जायला निघाल्याने ती पण थांबली नाही. कॉलेजमध्ये एक्स्ट्रा क्लास असल्याने त्या दिवशी संध्याकाळी मी उशिराच घरी आलो. पाहतो तर ती साजश्रुंगार करून प्रेयसीसारखी माझीच आतुरतेने वाट पाहत होती. जणुकाही मी तिचा प्रियकरच होतो की काय ? तिने भरजरी काठापदराची, मोरपंखी रंगाची शालू नेसली होती. तीने बहुतेक ब्युटी पार्लरमध्ये जावून आपला चेहरा उजळून घेतला असावा. कारण यापूर्वी असा तिचा तजेलदार चेहरा मी पाहिला नव्हता. केसाला तिने मोगर्‍याच्या फुलाचा गजरा गुंफला होता. तिचा चेहरा प्रफुल्लीत दिसत होता. तिच्या नटण्याने ती खरोखरच सुंदर दिसत होती. ह्यावेळी मला तिच्या अलौकिक सौन्द्रयाचं खर्‍या अर्थाने दर्शन घडले. “काय भाउजी ? मी केव्हापासून तुमची वाट पाहत आहे.” मला ती नाराजीच्या सुरात म्हणाली. “सॉरी वाहिनी.. उशीर झाला. एक्स्ट्रा क्लास होता. आता तुमच्याकडेच जेवण असल्याने मी काही घाई केली नाही. पण वहिनी, तुम्ही या साडीवर फारच सुंदर दिसता...तुमचा चेहरापण आकर्षक आहे.” मी तिची स्तुती करून तिला समजाविन्याच्या सुरात बोललो. “बरं बर ... जेवण तयार आहे. फ्रेश होवून या... जेवायला...” मी मान हलवून हो म्हटले. मी फ्रेश होवून पैजामा-शर्ट घालून तिच्या घरात गेलो. तिने जेवणाचे दोन ताट केलेत. मस्त पंचपक्वानाचा रुचकर स्वयंपाक केला होता. दोघांनीही मग हसत हसत एकत्रितपणे जेवण केले. “खूप छान...! खूप छान जेवण झाले, वहिनी.” मी तिच्या चेहर्‍या कडे पाहत बोललो. मी तिचे असे कौतूक केल्याबरोबर तिचा चेहरा आनंदाने फुलून गेल्याचे मला दिसले. “आता मी जाऊ ?” असे म्हणून मी तिचा निरोप घेणार तर ती मला अडवून म्हणाली, “नाही... कुठे जाता ? आणखी एक खास कार्यक्रम राहिला. थांबा थोडा वेळ. मी आवरून आलेच.” ती म्हणाली. आणखी कोणता कार्यक्रम राहिला, याची मला उत्सुकता लागली. ती पसारा आवरून येईपर्यंत मी तसाच पाटावर बसून राहिलो. ती आल्यावर म्हणाली, “चला आतमध्ये... बेडरूममध्ये...” मी तिच्या मागेमागे बेडरूममध्ये गेलो. तिथे पाहतो तर काय...? रंगीबेरंगी फुलांनी सजवलेली तिची बेडरूम पाहून मी अक्षरशः थक्क झालो. बेडच्या मखमली चादरीवर गुलाब व मोगर्‍याच्या फुलाच्या पाकळ्या टाकल्या होत्या. त्याच्या मोहक सुवासाने मी बेधुंद झालो. मी भान हरपून नुसतेच काहीवेळ पाहत राहिलो. मला हे सारे अनपेक्षित होते. ते पाहून माझ्या डोळ्याचे पारणेच फिटले, म्हणाना !. मी सिनेमात सुहागरात साजरी करतांना असे दृश्य पाहिले होते ? मी हर्षचकित होवून माझ्या तोंडातून सहज शब्द बाहेर पडले. “हे काय सुहागरात सारखी बेड सजवली, तुम्ही...?” “हो. माझ्यासाठी ही दुसरी सुहागरात असेल. पण तुमच्यासाठी मात्र पहिलीच सुहागरात आहे. नाही का ?” आता मी समजून चुकलो की, दुसरा कार्यक्रम म्हणजे हाच असावा ! आता त्यातून माघार घेता येत नव्हती. असं ते मदनमस्त वातावरण पाहून कोणताही माणूस विरघळून गेल्याशिवाय राहणार नाही. विस्तवाजवळ तूप ठेवले तर ते वितळणारच. तशीच माझी गत झाली होती. माझ्या शरीरातून काम लहरी वाहू लागल्या होत्या. कामवासनेने मी पुरता पेटलो होतो. इकडे त्या कल्पनेने माझा लवडा लोखंडासारखा कडक होवून ताडताड पैजाम्यात उसळ्या मारत होता. आता त्या बेडवर कामज्वराने भडकलेलं माझं शरीर झोकून दिल्याशिवाय राहवले नाही. मी जसा तिच्या बेडवर उताणा झोपलो. त्याचक्षणी तीपण माझ्या अंगावर येऊन झोपली. तिच्याही अंगात कामवासना पेटून निघाली असावी. मीतर पूर्णत: कामांध झालो होतो.. तिने माझ्या छातीवर तिची छाती भिडविली. तिचे दोन्हीही फुगेलेले स्तन मझ्या छातीवर दाबल्या जात होते.. मग तिने तिचे तोंड माझ्या तोंडाजवळ आणून माझ्या गालाचा, कपाळाचा मुका घेतला. माझ्या ओठावर ओठ ठेवून दीर्घ चुंबन घेतले. माझ्या तोंडात जीभ टाकून रसपान करू लागली. तिला या गोष्टीची सवय असेल, पण मला मात्र ह्या गोष्टी अगदी नवीनच होत्या. मी तिच्या या कामुक आक्रमकतेने पुरता बेभान झालो होतो. तिने माझ्या अंगातल्या शर्टाच्या गुंड्या काढण्यास सुरुवात केली. मग मी तो शर्ट छाती थोडी वर करून काढून टाकला. मग ती माझा पैजामा खाली सरकवीत होती. शेवटी मी पायातून पैजामा व चड्डी बाहेर काढला. तेव्हा माझा टर्र फुगलेला लवडा एकदम बाहेर पडला. आता मी पूर्णपणे उघडा झालो होतो. मग मी तिच्या ब्लॉउजचे हुक्स काढायला लागलो. आतमध्ये ब्रा नव्हतीच. बहुदा तिने आधीच काढून ठेवली असावी. त्यामुळे तिचे गरगरीत गोल असलेले दोन्ही स्तन सताड उघडे पडलेत. मग मी माझ्या दोन्हीही हाताने तिच्या स्तनाला कुरवाळयाला लागलो. तिचे ते मदनमस्त स्तन किती दाबू न किती नाही असे मला झाले होते. ते इतके मोठे होते की ते माझ्या एका हातात मावत नव्हते. दोन्ही हाताने एक एक स्तन धरुन दाबत होतो. तिच्या ताठ व कडक झालेल्या निप्पलला धरत होतो. एका हातात स्तन धरुन दुसरा हात तिच्या साडीवर नेला. पेटीकोटात खोचलेल्या साडीला बाहेर काढले. मग तिच्या पेटीकोटाचा नाडा सोडला. आत मध्येही चड्डी नव्हतीच. म्हणजे ती आधीपासूनच तयारीत होती. तिने मग साडी व पेटीकोट पायातुन काढून घेतला. आता ती पुर्णपणे नग्न झाली होती. एखाद्या स्त्रीचे नग्न शरिर मी पहिल्यांदा पाहत होतो. तिचे ते छातीवरील गोलगोल, मोठेमोठे स्तन पाहून बेधुंद झालो होतो. मग तिने माझ्या ताठ झालेल्या लवड्याजवळ तिने तिचा पुदीचा भाग आणला. माझ्या डोळ्यात ती खोलवर पाहू लागली. मी ओठावर हसू आणून तिच्या कृत्याला मूक संमती दिली. “भाउजी.... तुम्ही किती छान दिसता ? तुमची भरदार छाती पाहून मी केव्हाचीच तुमच्यावर फिदा झाली होती. मला तुमच्या छातीवर माझी छाती कधीतरी ठेवता येईल का याचे स्वप्न पाहत होती.” “वहिनी, तुम्हीपण किती सुंदर दिसता ? तुमच्या ह्या भरदार स्तनाकडे पाहून मला कधीतरी हातात धरता येईल का याचे मी पण स्वप्न पाहात होतो. आता तो सोनेरी क्षण आला मी खरेच भाग्यवान असे मला वाटत आहे.” मग तिने तिचे दोन्ही पाय माझ्या पायावर, मांड्या माझ्या मांड्यांवर ठेवल्या. मी तिच्या उघड्या मांड्यावर, तिच्या भरीव नितंबावर, पाठीवर माझा हात सहज फिरवीत होतो. ‘वाहिनी, तुमचे अंग किती कोमल आणि नाजूक आहेत ? तुमच्या मांड्या आणि तुमचे सारेच शरीर ! जणू रेशमावरुन हात फिरवल्यासारखे वाटते !’ हे ऐकताच ती मोठ्या खुषीत आली व तिने माझा एक हात हातात धरून तिच्या स्तनावर नेऊन मला दाबण्याचे संकेत देत होती. तिच्या या कृतीवरून व तिच्या आनंदित चेहऱ्यावरून ती फारच सुखावून गेल्याचे मला दिसत होते. मी तिच्या खाली असल्याने माझे दोन्हीही हात तिच्या उघड्या शरीराचे मर्दन करायाला मोकळेच होते. तिच्या शरीराशी खेळायला मला खूप खूप आनंद मिळत होता. ती सारखी माझा हात धरत तिचे स्तन दाबायला प्रोत्साहित करीत होती. तिचे स्तन दाबायला मला सुद्धा खूप मजा वाटत होती. याआधी मी कुणा स्त्रीचे अशा प्रकारे स्तन कधीच धरले नव्हते. तिने तिचे नितंब वर उचलले तेव्हा मी मान वर करून तिच्या पुदिकडे सहज पाहिले. तिची पुदी आतुर होवून चांगलीच फुललेली व पुदीचे मुख आपोआप उघडलेले दिसले. तिच्या पुदीतुन पाझरणारा स्त्राव चमकत असल्याचे वाटत होते. मग तिने आणखी वेळ न दवडता माझ्या सरळ उभा झालेल्या लवड्यावर तिची पुदी अलगदपणे टेकवली. त्याचक्षणी माझा लवडा आतमध्ये हळूहळू पुदीत सरकत गेला. माझा लवडा तिच्या पुदीमध्ये मस्तपैकी घुसत असल्याचे मला जाणवत होते. असे करत करत तीने माझा लवडा पूर्णपणे पुदित घालून घेतला. मग ती लवड्यातून पुदी हळूच वर उचलीत होती व पुन्हा ती पुदिला लवड्यावर दाबत होती. मी पण माझी कंबर वर उचलून आणखी आणखी तिच्या पुदित लवडा घट्ट दाबत होतो. ह्या क्रियेमध्ये मला मोठी मजा वाटत होती. कधी ती माझा लवडा आपल्या पुदीत घट्ट पकडीत होती. त्यामुळे तिच्या पुदीचे स्नायु खर्‍या अर्थाने मला संभोगाची अनुभुती देत होती. जेव्हा तिच्या पुदीचा माझ्या लवड्याला जीवनात पहिल्यांदा स्पर्श झाला. तेव्हा अहाहा ! काय सांगू त्यावेळेसच्या माझ्या भावना ! मला स्वर्ग सुख मिळाल्यासारखे वाटत होते ! मध्येच ती आपली कंबर घोड्यावर बसल्यासारखी वरखाली करीत हिसके मारायला लागली. माझा लवडा आता पुर्णपणे तिच्या पुदीत फिट्ट बसला होता. मी सुध्दा माझी कंबर वर करुन खालून तिच्या सारखेच दणके मारू लागलो. हा अनुभव मला अगदी स्वर्गीय वाटत होता. ती आनंदाने चीत्कारीत होती. विव्हळत होती. मी तिचे स्तन दाबत म्हटले, “किती सेक्सी आहे, वहिनी तुमची पुदी ! मला फार आवडली बुवा !” “माझी पुदी आवडली... मी नाही आवडली ?” अशी ती लटक्या रागात म्हणाली. मग मी तिच्या स्तनाला कुरवाळत म्हणालो, ”तुम्ही पण खूप सेक्सी आहात. मला खरच तुम्ही मनापासून आवडता.” मग हिसके मारता मारता ती थोडी थांबली. माझी कंबर तिने खालून दोन्ही हाताने ताठपणे वर उचलली.. ती आपला पुदीदाणा माझ्या लवड्यावर घासत असल्याचे माझ्या लक्षात आले. या कृतीने मी अक्षरशः मनमुरादपणे सुखावलो. मी तिचे नितंब दोन्ही हाताने धरून घट्ट पकडले होते. वर तिच्या छातीवरील गरगरीत मोठ्मोठे स्तन आळीपाळीने तोंड वर करून चोखत होतो. मग मी तिच्या उत्तेजीत झालेल्या स्तनाग्रांना माझ्या बोटांच्या चिमटीत धरले आणि त्या स्पर्शाने ती मादकपणे विव्हळली ती मध्ये मध्ये माझी कंबर धरून तिच्या पुदिवर दाबत. होती. माझा निसटलेला हात पुन्हा धरून स्तनावर ठेवत होती. तिचे स्तन एका हातात मावत नव्हते. मग मी दोन्ही हाताने तिचे स्तन दाबत होतो. कुरवाळत होतो. दोन्ही हाताने तिचे स्तन पिरगाळून तोंड वर करुन दुघ पिल्यासारखे तिचे निप्पल चोखत होतो. मग एकएक करून दोन्हीही स्तनाचे निप्पल आलटून पालटून चोखत होतो. त्यातील कोरडे दुघ पीत होतो. खालून तिला हिसके मारण्याच्या माझ्या उत्साहाला आता मोठे उधाण चढले होते. तिने पण हिसक्याचा वेग वाढविला. माझा लवडा मुळापर्यंत तिच्या पुदीत गेला होता. मी तिला झवन्यापेक्षा तीच मला मस्तपणे झवत होती. एखाद्या माणसासारखीच ती माझ्या अंगावर पडून ती मला झवत होती. बाईला हेपतांना नवख्या माणसाचे लवकरच वीर्य स्खलन होत असते, असे मी ऐकले नि वाचले होते. पण ही बाई मला कितीतरी हिसके, दणके मारत होती, तरीही माझ्या लवड्यातील वीर्य काहीकेल्या पडत नव्हते. माझ्या अंगात काय बळ आले होते, कुणास ठाऊक ? तिने ही गोष्ट मला बोलूनही दाखविली. “भाऊजी, एक सांगू. माझ्या नवर्‍याचे वीर्य लवकर पडते. मग ते दगडासारखे थंड होतात. त्यामुळे माझे काहीही समाधान होत नाही. कितीदा मी अतृप्तच राहते. मी किती वेळापासून तुम्हाला हेपत आहे पण तुमचं वीर्य तर अजूनही पडून राहिले नाही. हे एक आश्चर्यच आहे. किती हेपण्याचे हिसके मारू न किती नाही, असेच मला झाले आहे.” “हो ना ! मीपण एक चावट कथा वाचली होती. त्यात असे काहीतरी लिहिले होते. वहिनी, एक सांगू. मी ऐकले की माणूस बाईला हेपते. पण येथे तर बाई माणसाला हेपत आहे. हे पण एक आश्चर्यच आहे. नाही का ? खरच वहिनी तुम्ही खूप खूप छान हेपता.” हावरटपणे तिच्या सौन्द्रयाचा आस्वाद घेत मी तिला म्हणालो.. माझे असे कौतुकाचे बोलणे ऐकून ती आणखी आणखी त्वेशाने मला हेपत होती. तिच्या हेपन्याला आता काही धरबंधच उरला नव्हता. मध्येच तिचा माझ्या लवड्यावर पुदी घासण्याचा वेगपण वाढत होता. हेपतांना तिच्या तोंडून लयबध्द हुंकार बाहेर पडत होते. माझ्या सोबतच्या सम्भोगाने तिची कामतृप्ती झाल्याचे तिच्या चेहर्‍यावर झळकत होते. कधी ती हेपता हेपता थांबली की, तिच्या घट्ट पुदीची माझ्या लवड्यावरील पकड जाणवत होती. मग मी तिचे नितंब धरून खालून कंबर वर करून तिच्या पुदीला धक्के मारत होतो. त्याने तिला कळायचे की, माझे अजुनही विर्य स्खलन व्हायचे आहे. मग ती पुन्हा तिची कंबर वर-खाली करून मला साथ द्यायची. असा आमचा प्रणयाचा खेळ चांगला रंगत आला होता. कितीतरी वेळ आम्ही या खेळात रमून गेलो होतो. मी तिचे दोन्ही नितंब माझ्या दोन्ही हाताने धरून तिला थोडे वर स्थिर पकडले व खालून फटाफट तिच्या पुदीला फटके मारत झवू लागलो. मी तिला न राहवून विचारले, “वहिनी, एक विचारू. माझ्यासोबत हा सुहागरात्रीचा कार्यक्रम कसा काय ठरविला ? तुझ्या नवर्‍याला माहित झाले तर ते तुला मारुन टाकतील ना...” “नाही... त्यांच्या संमतीनेच हा कार्यक्रम ठरला.” थोडावेळ थांबत पुन्हा ती म्हणाली, “भाउजी, तुम्हाला माहीत आहे ? हा कार्यक्रम करण्यासाठी मुद्दाम त्यांनी ट्रेनिंगला नंबर लावला. का तर, आपल्या दोघांचा सुहागरात चांगला व्यवस्थित पार पडावा म्हणून !” असे म्हणत तिने आणखी जोर देत आपली पुदी माझ्या लवड्यावर जोरात दाबली. “पण तुम्ही कसा काय असा विचार केला ?” मी पण तिच्या स्तनाला हाताने जोरात दाबत उत्सुकतेने तिला विचारले. “त्याचं कारण असे की, आमच्या लग्नाला १० वर्ष झाली, तरीही मुल-बाळ झालं नाही. आम्ही दोघांनीही वैद्यकीय तपासण्या केल्या. त्यात माझ्यात काहीही बिघाड दिसला नाही. पण माझ्या नवर्‍याच्या विर्यातील शुक्राणू कमी असल्याने मला गर्भधारणा होत नव्हतीं, असे डॉक्टरांनी सांगितले.” थोडे थांबून पुन्हा ती म्हणाली, “मुलांसाठी आम्ही फार आसुसलेले झालोत. आम्हाला माहीती मिळाली की, अशा वेळेस ‘टेस्ट ट्युब बेबी’च्या माध्यमातून गर्भधारणा शक्य आहे. पण त्यासाठी पाच लाखाच्या वर रुपये मोजावे लागतील आणि एवढे पैसे जुळवणे आमच्या आवाक्याबाहेरचे होते. कारण नवर्‍याची साधारण नोकरी.
आता आमच्याकडे दुसरा पर्याय दिसला तो म्हणजे ‘नियोग’ पद्धतीचा. पुराणात असा उल्लेख आला असल्याचे म्हणतात की, नवर्‍या पासून जर अपत्य होत नसेल तर ऋषि-मुनिशी सम्भोग करून त्याच्या वीर्यापासून गर्भधारणा करून घ्यावं. म्हणून आम्ही हाच नियोगाचा मार्ग अनुसरण्याचे ठरविले..” .”तरी पण तुम्हाला अशी ही कृती अवघडल्यासारखी वाटली नाही.” मी तिला शंका उपस्थित करीत विचारले. “हो. आम्ही ह्यावर खूप विचार केला. नीती-अनीतीच्या संस्काराचा पगडा असल्याने आमचं मन असं करायला धजत नव्हतं. मग आम्ही आमच्या मनाची खूप समजूत काढली. आपल्याला बाळ पाहिजे ना, मग ह्या नीती-अनीतीच्या कल्पना झुंगारून दिल्या पाहिजेत. असं आम्हाला वाटायला लागलं. आता काही मिळवायचे असेल तर काहीतरी द्यावे लागेलच, हीच जगाची रीत आहे. म्हणून विर्याच्या बदल्यात मी माझं शरीर अर्पण करायचे, असे आम्ही ठरविले” पुन्हा थांबून ती म्हणाली. “मला सांगा भाउजी, बायकोत खोट असली की नवरा दुसरी बायको करतो. पण नवर्‍यात जर खोट असेल तर बायकोनं काय करावे ? मग तिने दुसर्‍या माणसाचे वीर्य या पद्धतीने मिळवून बाळ पदरात पाडून घेतले, तर काय बिघडले ? “तुमचं बरोबर आहे. पण वहिनी,आणखी एक विचारू. त्यासाठी माझीच निवड का केली. मी तर पुराणाताला ऋषीं नाही.” मी तिला उत्सुकतेने विचारले. ती किंचीतशी हसली व म्हणाली, “तुम्ही ऋषीं नाहीत पण माणूस तर आहात ना... तुम्ही आमची खोली घेतल्यापासून तुम्हाला पाहून आमच्या आशा पल्लवित झाल्या. कारण तुम्ही तरुण आहात, दिसायला सुंदर आहात, तुमच्यापासून होणारा बाळ हा सुंदरच निपजेल, गोरागोमटा असेल यात काही शंका नाही म्हणून आम्ही तुमचीच निवड केली.” हिसके मारता मारता थोडं थांबून पुन्हा ती म्हणाली, “शिवाय तुम्ही आमच्याच घरी, बाजूच्याच खोलीत राहत असल्याने हे काम पार पाडण्यास काहीही अडथळा येणार नाही. आणखी तुमचं लग्न न झाल्याने या कामात विघ्न निर्माण करणारी कुणी नाही. सहसा बायको अडथळा आणत असते. म्हणजेच तुम्ही ब्रह्मचारी असल्याने आमच्यासाठी हा प्लस पॉइंट होता. मग तुम्हाला कसं पटवायचं हे काम माझ्या नवर्‍याने माझ्याकडे सोपविले.” इतकं ती एकादमात बोलून गेली. थोडं थांबून व हिसक्याचा वेग वाढवून ती म्हणाली, ‘आता तुम्हाला कसं पटवलं ते विचारू नका ! ते तुम्हाला माहिती आहेच !.’ “अच्छा... तर मी तुमच्या बाळाचा बाप होणार... कुवारां बाप...” असं मी तिला विनोदाने म्हणालो. ती हो म्हणत खळाळून हसली व माझ्या लवड्यावर तिने आपली पुदी आणखी दाबली. मग तिने माझ्या लवड्यातून हळूहळू पुदी बाहेर काढून बाजूला उताणी झोपली. थोडावेळ तशीच पडली. नंतर तिने माझा हात पकडला व मला तिच्या अंगावर चढण्याचे खुणावले. मी मग तिच्या अंगावर चढलो. ती मला घट्ट पकडून माझे चुंबन घेवू लागली. मीपण तिच्या ओठाचे जोरात चुंबन घेवू लागलो. तिने फाकवलेल्या तोंडात मी माझी जीभ सरळ आत घातली. तीपण माझी जीभ चोखू लागली. आमच्या जिभा एकमेकांच्या तोंडात नाच करू लागल्या. मग मी माझे तोंड तिच्या स्तनावर सरकवले. स्तनाचे रबरासारखी ताठ झालेले निप्पल तोंडात घेवून चोखण्याचा मोह मला आवरता आला नाही. तिच्या तोंडातून उन्मादाने चित्कार बाहेर पडत होते. तिच्या स्तनात दुध असते तर ते मी भरभरून पिलो असतो. अशा पद्धतीने मी तिचे स्तन चोखत होतो. तिने माझा कडक लवडा आपल्या हातात धरून आपल्या पुदीच्या भोकावर बरोबर ठेवला. काही क्षण मी त्याला तिच्या पुदीच्या चिरेवर वर खाली घासला. नंतर पुन्हा तिने त्याला तिच्या पुदीच्या बाहेरील पटलाच्या थोडा आत ढकलून पुदिच्या भोकावर ठेवला. तिने तिचा पार्श्वभाग वर उचलून व माझे नाक हळूच हाताच्या दोन बोटाच्या चिमटीत पकडून पुदित लवडा घालण्यासाठी मला मुक संमती दिली. मी हळु हळू माझा लवडा तिच्या पुदीत घालायला सुरुवात केली. जसा मी लवडा आत ढकलत गेलो, तशी तिची पुदी फुलाच्या पाकळ्यासारखी उघडत गेली. माझा लवडा तिच्या पुदीत लोण्यात सुरी चालवल्यासारखा आत आत जाऊ लागला. अचानक तिने खालून धक्का दिला व माझा लवडा सरळ तिच्या पुदीत मुळापर्यंत खोल घुसला. बापरे...! तिच्या पुदीने माझा लवडा घट्ट पक्कडीत पकडल्यासारखा वाटत होता. मग मी तिच्या पुदीत माझा लवडा आत बाहेर करत तिला आवेशाने झवू लागलो. तीही मला खालून धक्के देत साथ देवू लागली. माझे गाल ती हाताच्या बोटाच्या चिमटीत पकडून गालगुच्चा घेत होती. एखाद्या बाळाचा मुका घ्यावा तसा ती माझ्या दोन्ही गालाचा ती आपल्या मदनमस्त ओठाने गोड पापा घेत होती. मी तिच्या स्तनाला तोंडात धरून अधीरतेने चोखू लागलो. मध्येमध्ये मी तिचे उत्तेजीत झालेले निप्पल जिभेने दुध पिल्यासारखे ओढत होतो. तिचे स्तन कोरडे असल्याने त्यातून दुघ निघत नव्हते, ती वेगळी गोष्ट ! तिच्या पुदीत माझा लवडा आत बाहेर होवू लागला. मीही तिच्या नितंबांना धरून तिला माझ्या लवड्यावर वर खाली करू लागलो. मी तिला मजेत झवायला लागलो. तिचे शरीर तालबद्धरीत्या हलत होते. माझ्या झवण्याने. लवकरच माझा लवडा तिच्या पुदीरसाने पुर्ण ओला झाला होता. ज्यामुळे आत-बाहेर करतांना पुदीच्या काठाला घासत होता. ते घर्षण कमालीचे सुखद वाटत होते. माझ्या प्रत्येक हिसक्याने ती आनंदाने विव्हळत होती. मला तिला हेपायाला खूप मजा येत होती. “भाऊजी, तुम्ही याआधी कुणा बाईला हेपले काय ? माझ्या नवर्‍यापेक्षाही तुम्ही कितीतरी छान हेपता ? तुम्हाला कोणी शिकवले असे ?” ती माझ्या डोळ्यात डोळे घालून बोलली.
मी थोडावेळ थांबून तिला म्हणालो. “नाही बा... मी या आधी कुण्या बाईला कधीच हेपले नाही, पहिल्यांदा मी तुम्हाला हेपत आहे. तुमच्यापासून माझ्या या कामजीवनाची सुरुवात झाली आहे, असेच समजा ना... म्हणजे गृहप्रवेशाच जसं उदघाटन होते न् तसच तुम्ही माझ्या लवड्याच्या प्रवेशाच उदघाटन तुमच्या गोड पुदिद्वारे केलं, असंच म्हणावे चालेल. खरं ना...” यावर ती गोड हसली. मी माझा लवडा तिच्या पुदित खोलवर दाबून तिला म्हणालो, ‘तुम्ही आणखी काय म्हणालात ? मला हेपायला कुणी शिकवले ? हं. मला न... तुम्हीच तर आता शिकवले, कसे हेपायचे ते... तुम्हीच तर वर होवून मला हेपत होत्या ! जणूकाही मी बाई आहे व तुम्ही माणूस आहात असे समजून तुम्ही मला मजेत हेपत होत्या. त्यातून मी शिकत गेलो. तुम्ही अनुभवी आहात... या कामात तुम्ही तरबेज दिसता. मी या कामात मात्र नवखा आहे...” ज्या तीव्रतेने मी तिला झवत होतो, त्याच अधीरतेने तीपण कंबर वर-खाली करून मला झवत असल्याचे अनुभूती देत होती. "वहिनी, तुम्हाला आवडले ना माझे हेपणे ?" “हो ना ! खरच भाऊजी, मला फारच आवडले मी खूप खूष आहे.” ‘मग मला इच्छां होईल तेव्हा हेपू द्याल ?’ ‘हो ना... मी कधीही तुमच्यासाठी तयार राहीन. तुमच्या बायकोसारखी !’ ‘मला अजून बायको आली नाही, ना.’ ‘मलाच बायको समजा...!’ तुमचं लग्न होईपर्यंत. मग मात्र तुमची बायको तुम्हाला माझ्याकडे येऊ देणार नाही. तोपर्यंत मलाच हेपून घ्या.’ ‘बरं बाई...!’ असं म्हणून मी तिचे स्तन कुरवाळले व पुदीतून लवडा काठावर आणून परत पुदित घातला. व सारखे हिसके मारायला लागलो. काही वेळ हिसके मारीत झवल्यानंतर तिचे शरीर अचानक ताठ झाल्याचे मला जाणवले. मग तिने माझ्या कमरेला पायांनी घट्ट पकडले. मला जाणवले की, माझ्या लवड्याभोवती तिच्या पुदीची पकड घट्ट झाली होती. बहुदा ती कामतृप्त झाली असावी.. माझा लवडा तिच्या पुदीत प्रमाणाच्या बाहेर कडक झाला होता. मी हेपण्याचा आणखी वेग वाढवला. मी तिला हमसून हमसून झवू लागलो. दोघांच्या हुंकाराने व झवण्याच्या आवाजाने ती रुम भरून गेली होती. काही क्षणातच सुखाच्या परमोच्च बिंदुला पोहचण्याचे संकेत मिळाल्यावर मी तिच्या पुदीत अगदी खोलवर एक जोराचा धक्का देवून. माझ्या गरम गरम वीर्याचे फवारे उडविले. तिची पुदी माझ्या गरम गरम चिकट वीर्याने भरून गेली.. माझ्या लवड्यातून इतके विर्य तिच्या पुदीत पडले की ते तिच्या पुदीत पूर्णपणे सामावले नाहीत. त्यामुळे ते तिच्या पुदीच्या बाहेर पडून ओघळत होते. तिच्या ओठाचे चुंबन घेत व तिच्या स्तनांशी खेळवत मग मी माझा लवडा कांही वेळाने हळुवार तिच्या पुदीतून बाहेर काढला. तिची तृप्त पुदी आता माझ्या वीर्याने माखली होती. माझा लवडा पुदीतील रसाने न्हाऊन चमकत होता. “बापरे, इतके वीर्य तुमच्या लवड्यात आहे. माझ्या पुदीत मावत नाही इतके ! आता मी नक्कीच या वीर्याने गरोदर राहीन, यात काही शंका नाही. भाऊजी, तुम्ही तुमचे वीर्य दान करून माझ्या ओटीत भरभरून टाकले, त्याबद्दल मी खरोखर तुमची फार आभारी आहे. कधीपासून मी मातृत्वासाठी तडफडत होती, आता माझी कुस निश्चितच उगवेल व माझे स्वप्न पूर्ण होणार याची मला खात्री झाली.” “वहिनी, त्यात कसले आले आभार ? तुम्हीही माझ्या विर्याच्या बदल्यात मला खूप खूप सुख दिले, हेही काही कमी नाही. पण एकाच झवन्याने तुम्ही गरोदर राहाल तर मग मला पुन्हा झवू देणार नाही की काय ?” “नाही... नाही...तसं नाही. मी तुम्हाला कधीही हेपायला नाही म्हणणार नाही.” मग मी तिच्या अंगावरून उठलो आणि तिच्या बाजूला पडलो. माझा हात मात्र तिच्या स्तनावरच स्थिरावला होता. तो काही केल्या तेथून हटत नव्हता. या कामात मी अजूनही तरबेज न झाल्याने व मी पहिल्यांदा एका बाईला हेपत असल्याने चांगलाच घामाघुम झालो खरा ! पण या प्रणयक्रिडेने माझे मन कसं ताजेतवाने झाल्यासारखे वाटत होते. आम्ही दोघेही सतत पंधरा दिवस - तिचा नवरा ट्रेनिंगवरून परत येईपर्यंत प्रत्येक रात्र अशीच सजवित गेलो. नंतरही तिचा नवरा नोकरीच्या ठिकाणी मुद्दामच मुक्कामाने जात होता. म्हणजे तो आमच्या प्रणयाला मोकळीक देत होता. फक्त सुट्टीच्या दिवशी तो घरी राहायचा. दोन महिन्यानंतर तिची मासिक पाळी बंद झाली. तेव्हा ती मनोमन सुखावली. दवाखान्यात जाऊन तिने प्रेग्नन्सी टेस्ट करून घेतली तेव्हा तिला गर्भधारणा झाल्याचे डॉक्टरांनी सांगितले. तेव्हा तिच्या आनंदाला पारावार उरला नाही. तिने पहिला पेढा माझ्या तोंडात टाकला. व माझे खूप खूप आभार मानले. तिच्या आयुष्याला आता नवी झळाळी प्राप्त झाली होती. प्रेग्नन्सी नंतर ती माझ्या पासून दूर जात असल्याचे मला जाणवले. तिचा नवराही आता तिला सोडून क्षणभरही राहात नव्हता. मग मी पण माझ्यावर नियत्रण ठेवण्याचा प्रयत्न करीत गेलो. जसजसे तिचे पोट वर यायला लागले, तसतसे लोकात कुजबुज सुरु झाली. आमच्या दोघाच्या संबंधाबाबत लोकांना शंका यायली लागली. तेव्हा मी खोली बदलवून दुसरीकडे राहायला गेलो. तिला मुलगी झाल्याचे मला समजले. तेव्हा मी एकदा तिला नर्सिंग होममध्ये भेटायला गेलो होतो. तेव्हा तिने माझे हसूनच स्वागत केले. पण बोलली काहीच नाही. तीची मुलगी अगदी माझ्या सारखीच दिसत होती, म्हणून तेव्हा लोकांना खात्रीच झाली की, ही मुलगी होय ना होय, राजनचीच असली पाहिजे. त्यामुळे मलाही अवघडल्यासारखे होत होते. म्हणून त्यानंतर मला प्रथमच आणि मुक्तपणे संभोगसुख देणार्‍या त्या वहिनीला कधीही भेटायला गेलो नाही. तीही कधी मला भेटायला आली नाही. बस येथेच आमची विर्यदानाची लांबलेली कथा संपली. मी ही कथा सांगत असतांना राणी म्हणजे माझी पत्नी अगदी शांतपणे मन लाऊन ऐकत होती. कथा संपल्यावर आम्ही दोघेही थोडा वेळ स्तब्ध राहिलो.. मग राणीनेच शांतता भंग करून म्हटले, “ठीक आहे. तुम्ही काही वाईट काम केले नाही. त्यामुळे मी तुमच्यावर रागावर नाही. उलट तुम्ही एका स्त्रीला मातृत्व प्रदान केले, याचा मला अभिमान वाटतो. टेस्ट ट्युबच्या प्रयोगात अनाठायी खर्च करण्यापेक्षा ही विर्यदानाची पध्दत मला खरोखर आवडली. फक्त स्त्रीयांनी त्यासाठी नीती-अनीतीच्या जोखडातून बाहेर पडले पाहिजेत, असे मला वाटते.” मी पण तिच्या विचाराला प्रतिसाद देत म्हटले, “बरोबर आहे. इतका सोपा उपाय असतांना लोक विनाकारण टेस्ट ट्युबसाठी लाखो रुपये खर्च करतात, नाही का?” “हो. पण आता कुण्या स्त्रीला विर्यदान करण्याच्या भानगडीत पडू नका. दुसर्‍या एखाद्या तरुणाला चान्स द्या.” असे ती गमतीने म्हणून थांबली. परत ती माझ्याकडे पाहत म्हणाली, “आता मलाही आपल्या बाळाची उत्सुकता लागली आहे. तुम्ही जसं तुमच्या वहिनीच्या पुदीत भरपूर वीर्य ओतलं, तसेच माझ्याही पुदीत वीर्य ओता. अन हो. मी काही दान मागत नाही, तर हक्काने तुमचे वीर्य मागत आहे.” यावर आम्ही दोघेही खळाळून हसलो. मग मी तिला जवळ ओढून मिठी मारली. आम्ही दोघेही नग्नावस्थेतच होतो मी लगेच तिच्या अंगावर झोपलो. मांडीला मांडी भिडली,. छातीला छाती भिडली. तिचे हिंदकाळणारे कठोर स्तन मी कुरवाळू लागलो. तिच्या स्तनांशी खेळत आम्ही दोघेही मस्त सुख घेत होतो. तिने माझ्या ओठावर ओठ ठेवले व जीभेला जीभ भिडवत रसपान करू लागली. मग तिची पुदीमुख उमलुन पुदीच्या पाकळ्या वेगळ्या झाल्या. तिने माझा ताठरलेला लवडा हातात घेऊन आपल्या उघड्या पुदीमुखावर घासायला सुरवात केली व त्याच क्षणी माझा लवडा तिने आपल्या पुदीत अलगत घुसवला. मी तिच्या स्तनाचे मर्दन करता करता स्तनाग्र तोंडात धरून चोखत होतो. मग मी लवडा तिच्या पुदीत सटासट आतबाहेर करुन तिला मस्तपैकी हिसके मारू लागलो. ती आपले हात माझ्या सर्वांगावरुन फिरवत मला सुखाच्या उत्तुंग शिखरावर पोहोचवत होती. शेवटी माझा कडेलोट होवून माझ्या लवड्यातील गरमागरम वीर्य भकाभक तिच्या पुदीत ओतले. मग ती खूष होवून माझ्या ओठाचे चुबन घेऊन शांत झाली.

--दोन तरुण शेजारी बद्दल मराठी कथा



बरेच वर्षापुर्वीची ही कहाणी आहे. पुण्याच्या प्रभात रोडवर राजुच्या आजोबांचे घर होते. राजुच्या आजोबांच्या पश्च्यात राजुची आजी तिथे एकटी रहायची. जुनी पण भक्कम तळमजला व वर एक मजली इमारत होती. इमारत जुनी असली तरी दोन मजल्यावर प्रत्येकी दोन असे ४ आधुनिक फ्लॅट होते.

राजुच्या आजीचा फ्लॅट पहिल्या मजल्यावर होता. २ बेडरुम, किचन, हॉल, २ बाल्कनी असा प्रशस्त फ्लॅटमध्ये (आजीच्या भाषेत "बिऱ्हाड") आजी एकटी रहायची.

राजुच्या आजीच्या शेजारच्या बिऱ्हाडात एक शर्मा कुटुंब रहायचे. एकत्र कुटुंब होते. मध्यम वयीन विधुर कर्ता पुरुष रामलाल, त्याचा २७ वर्षाचा विवाहीत तरुण मुलगा राजेश, राजेशची २५ वर्षाची बायको कुमुद व त्यांची ३ वर्षाची लहान मुलगी पिंकी, रामलालची कोमल नावाची २० वर्षाची तरुण मुलगी असे ते मध्यमवर्गीय कुटुंब होते. कोमल १२ वर्षाची असताना रामलालची बायको अचानक एका छोट्या आजारचे निमित्त होवुन वारली.

सुट्टीत राजुच्या आजीच्या सर्व नातवंडाचा मुक्काम पुण्याला असे. राजु व त्याची चुलत व आते भावंडे पुण्याला धमाल करायला सुट्टी लागली की पुण्याला पळत.

बारावीच्या वर्षी एकदा नापास होवुन राजु परत ऑक्टोबरला परिक्षेला बसला. रिझल्ट लागेपर्यंत करायला दुसरे काहींच नसल्याने त्याच्या आईबाबांनी त्याला पुण्याच्या एका क्लासमध्ये घातले व त्याची रवानगी राजुच्या आजीकडे पुण्याला केली.

राजु खुशीतच पुण्याला आजीकडे रहायला आला. त्याचा सध्यांकाळी ७ ते ९.३० क्लास असायचा. दिवसभर तो घरातच असायचा. राजुची आजीला दम्याचा त्रास होता. दमा चालु झाला की, तिला रात्री झोप लागु शकत नसे. त्यामुळे जेवणखाण आटपुन ती दुपारी २/३ तास झोपत असे.

आजीच्या शेजारील बिऱ्हाडातल्या रामलालचा कसलासा बिजनेस होता. रामलाल आणी त्याचा मुलगा राजेश सकाळी लवकर घराबाहेर निघायचे. कुमुदभाबी जेवण बनवुन तिघांचा डबा घेवुन ११ वाजता त्यांच्या दुकानात जायला घराबाहेर पडे व संध्याकाळी ५ नंतर परत येइ. राजेश व रामलाल उशीरा १० च्या नंतर घरी येत.

जेमतेम बारावीपर्यंत गचके खात पोचल्यावर, २ वेळा नापास झाल्यावर कोमलचे शिक्षण सुटले. रामलाल गेली ३/४ वर्षापासुन कोमलच्या लग्नाचा प्रयत्न करत होता. पण हुंड्याच्या अवास्तव मागणीपायी कोमलचे अजुनही कुठेही नक्की झाले नव्हते.

सध्या कोमलची कुमुदभाबी त्यांच्या फॅमिली बिसनेसमध्ये व्यस्त होती त्यामुळे लग्नाचे पक्के होइ पर्यंत सध्या कोमलवर तिच्यावर भाची पिंकीला बेबीसीटींग करत सकाळी ११ ते संद्ध्याकाळी ५ पर्यंत घरी रहायची ड्युटी लागली.

कोमलने कॉम्पुटरचे एक दोन किरकोळ कोर्सेस केले पण तिचे मन घरातच पुस्तके मासिके वाचण्यात जास्त रमायचे. ती लहान असल्यापासुन तिचे राजुच्या आजीशी चांगले जमे. त्यामुळे तिचे व पिंकीचे जेवण झाले की ती आजीकडे येउन बसे.

राजुची आजी पुण्यात एकटी रहात असताना, दररोज कुमुदभाबी घरातुन दुकानात जायला निघताच कोमल राजुच्या आजीकडे तिला मदत करायला, गप्पा मारायला येवुन बसायची. तिची भाची पिंकीही तिच्याकडेवर कोमलबरोबर आसायची. तिचा भाउ राजेश व कुमुदभाभी पण राजुच्या आजीला खुप मदत करत.

राजु, त्याची चुलत व आते भावंडे पुण्याला असली की धमाल करत. कोमल जरी अमराठी असली तरी लहानपणापासुन पुण्यात राहिली होती व मराठी शाळेत शिकली होती. त्यामुळे ती शुद्ध पुणेरी मराठी बोली. राजुपेक्षा १ वर्षांनी कोमल मोठी असली तरी लहानपणापासुन त्यांची चांगली गट्टी होती. राजु व त्याच्या भावंडात ती चांगली मिसळायची.

कोमल नावपुरतीच कोमल होती. २० वर्षाची कोमल थोराड दिसायची पण तरी राजुला आवडत होती. ५ फूट ३ ईंच उंची, किंचीत जाडी असल्यामुळे धिप्पाड दिसायची. कोमलचा चेहरा जरा थोराड दिसायचा. पण कोमलचे ओंठ मात्र राजुला आकर्षक वाटत. तिचे पिंगट रंगाचे दाट कुरळे केस राजुला माधुरी दिक्षितची आठवण देत.

कोमलचा चेहरा झाकला तर ती "खवा" होता असे राजुच मत होते. कोमलचा सगळ्यात मोठा ऍसेट तिचे कितीहि झाकले तरी उफाळुन येणारे तिचे गोळे व भरगच्च गांड. १०/१२ वर्षाचा असल्यापासुन राजुसाठी कोमल एक हिरॉइनच होती. ती नेहमी राजुच्या स्वप्नात डोकवायची. त्याचा उठायला लागल्यापसुन हातगाडी चालवताना त्याच्या मनात कायम कोमलची छबी असायची. ह्या गेल्या दोन वर्षांपासुन तर राजु तिच्याकडे फारच वेगळ्या नजरेने पाहु लागला होता.

कोमलच्या घरची मंडळी ११ वाजता बाहेर पडली कि कोमल पिंकीला घेवुन राजुच्या आजीकडेच असे. आजी दुपारी झोपली की कोमल व राजु गप्पा मारत कधी पत्ते खेळत. कोमल घरात गावुन घालायची. राजुच्या आजीच्या घरातही ती त्याच कपड्यात वावरे. कधी ती कुडता किंवा लूज शर्ट व खाली पेटीकोट असल्या वेशातही असे. कोमलच्या कडेवर बसलेल्या पिंकीला घेण्याच्या निमित्ताने राजु कोमलला हात लावे. तिच्या पाठीवर, कुल्ल्यावर त्याचा हात रेंगाळत राही. एकदोनदा त्याने हात कोमलच्या वक्षाच्याकडेला दाबुन घेतला. कोमलने आजुन तरी कधी विरोध केला नव्हता.

१८ वर्षाच्या कोमलचे वक्ष तिने ढगळ्या कपडे घतले तरी राजुच्या नजरेत चांगलेच भरायचे. राजुची नजर तिथेच खिळलेली असायची. कोमलला ते जाणवायचे. पण ती लक्ष नसल्यासारखे करायची. कोमलकडे बघताना मग राजुच्य शॉर्टमध्ये तंबु उभा राहायचा. कोमलचे लक्ष मग राहुन राहुन त्या तंबुवर जायचे.

कोमलला श्रिंगारकथा वाचायचा नाद होता. राजुने एक दोनदा तिला चावट गोष्टींची हिंदी मासिके व पुस्तके वाचताना पाहिले होते. राजुही तिला सिनेमाच्या गोष्टी व पांचट जोक सांगायचा व कोमल ते एंजॉय करायची.

एक दिवस दुपारी राजु कोमलला एका सिनेमाची गोष्ट सांगत होता. कोमलने तो सिनेमा पाहिलेला नसल्याने कोमल लक्ष देवुन ऎकत होती. राजु सिनेमातले डायलॉग मारत नटनट्यांची नक्कल करत होता. मग प्रणयप्रसंगाचे वर्णन करताना राजुने पटकन कोमलला मिठी मारली व तिच्या गालाचे जोरदार फिल्मी स्टाइलने पप्पी घेतली.

कोमल लालेलाल झाली. भानावर येत राजुने तिला "सॉरी" म्हणुन माफी मागायला लागला. कोमल रागाने पटकन पिंकीला घेवुन तिच्या घरी निघुन गेली.
प्रकरण २ रे


दुसऱ्या दिवशी कोमल राजुची जाम टरकली होती. सकाळी लवकर ऊठुन तो मित्राकडे निघुन गेला. त्यामुळे दिवसभर राजुला कोमल भेटली नाही. संध्याकाळी घरी येताना राजुला तर धडकीच भरली होती कि कोमलने तिच्या बापाला वा भावाला त्याची तक्रार केली तर त्याचे काय होइल.

पण क्लासहुन परत येताना कोमल त्याला जिन्यात भेटली व तिने नेहमीसारखे स्मितहास्य केले. राजुच्या जिवात जिव आला. घरी आल्यापासुन तो बाल्कनीत बसुन कोमलच्या घराकडे पाहत बसला होता. जेवण झाल्यावरही बराच वेळ थंडीत कुडकुडत तो बाहेर बसुन अंधारात कोमलच्या बाल्कनीकडे पहात राहीला .

दुसऱ्या दिवशी सकाळी उठुन परत राजुचा मुक्काम बाल्कनीतच होता. २/३ वेळा कोमल बाल्कनीत येवुन गेली. पण तिने राजुकडे पाहिले नाही. दुपारी जेवण झाल्यावर बेल वाजली आणी कोमल व पिंकी राजुच्या आजीकडे अवतरल्या.

राजु त्याच्या खोलीत आभ्यासाचे नाटक करत आजी व कोमलच्या गप्पांचा कनोसा घेत होता व आजी कधी झोपते याची वाट पहात होता. आजी झोपली तरी बराच वेळ कोमल आजीजवळच बसुन राहिली. ३/४ वेळा आत डोकावले पण कोमलने राजुकडे पाहुन न पाहील्यासरखे केले. राजुची तर कोमलशी बोलण्याची हिम्मत नव्हती.

राजु कोमलला किचनमध्ये काहीतरी खुडबुड करताना एकत होती. अचानक राजुला तिची अस्फुट किंकाळी कानावर आली. राजु धावतच किचनमध्ये गेला. कोमलने राजुचा हात धरला व समोरच्या कोपऱ्यातील फळीवर बसलेला ऎक उंदराचे पिल्लु दाखवले. राजु थोडा पुढे झाला तसे त्या पिल्लाने जमिनीवर उडी मारली. त्याबरोबर कोमलने राजुला मागुन मिठी मारली.

राजु पाठमोऱ्या असताना कोमलने मारलेल्या मिठीमुळे तिचे हात राजुच्या गळ्याभोवती होते व तिचे दोन्ही स्तन राजुच्या पाठीवर दाबले गेले. उंदराला पळायला जागाच नसल्याने ते पिल्लु तसेच कोपऱ्यात बसुन राहिले. कोमल अजुनही राजुला मिठी मारलेल्या स्थितीत उंदराकडे विस्फारलेल्या नजरेने पहात होती. राजुही न हालता कोमलच्या शरीराची उब अनुभवत राहिला.

राजु किंचीत वळला तसे कोमलची मिठी आता त्याला डाव्या बाजुने बसली. कोमलची छाती राजुच्या छातीवर सपाट झाली. ही अंगावर दाबली गेलेली गोलाईची जादु राजु प्रथमच अनुभवत होता. त्याने एक हात तिच्या पाठीवर आणला.

दोघांच्या हालचालीमुळे उंदराने परत एक उडी मारायचा प्रयत्न केला. त्याबरोबर कोमलने परत राजुला जोरदार मिठी मारली. पण ह्या वेळी तिने राजुला समोरुन मिठीत घेतले होते, तर राजुने दोन्ही हातानी कोमलला आवळले होते.

राजुचा बर्मुडामधील उंदीर आता मोठा होवुन कोमलच्या मांडीवर उड्या मारायला लागला होता. राजुच्या पायाच्यामध्ये कोमलची मांडी आली होती व तिचा उजवा बॉल राजुच्या छातीवर रगडत होता व राजु आजवर न अनुभवलेला एक आनंद घेत कोमलला बिलगुन होता. कोमलला अजुनही भान नव्हते. तिची नजर व लक्ष अजुनही पुर्णपणे उंदरावर होते.

राजुने कोमलच्या पाठीवरुन हात हळुच खाली सरकवला व कोमलच्या गरगरीत कुल्ल्यावर ठेवला. कोमलची नजर अजुनही उंदरात गुंतली होती. राजुने धीर करुन दुसरा हात हळुच कोमलच्या डाव्या गोळ्यावर ठेवला.

कोमलचा बॉल हातात मावत नव्हता तरी राजु हातात त्याला मापायचा प्रयत्न करत होता. राजुची छाती डेक्कन क्विनसरखी धडधडायला लागली. धीर करुन राजुने कोमलच्या बॉलवरचा दाब वाढवला. कोमलच्या कुडत्यावरुनही त्याला जाणवले की कोमलचा स्तन ताठरला आहे.

राजुचा त्याच्या चड्डीत बंदीस्त लवडा आता पुर्ण ६ इंचाचा होवुन फणा काढुन कोमलच्या मांडीवर उसळ्या मारत होता. राजुने कोमलच्या कंबरेला धरुन तिला जवळ खेचले व पट्कन तिच्या तोंठावर आपले ओठ ठेवले.

कोमल एकदम भानावर आली व राजुच्या गळ्यातला आपला हात सोडवत राजुच्या मिठीतुन सुटायचा प्रयत्न करायला लागली. या हालचालींमुळे उंदराचे पिल्लु हडबडले व कोमलच्या पायावर उडी मारुन पळुन गेले. कोमलने एक किंचाळी फोडत परत राजुला मिठी मारली.

आपला हिरो मजेत आपला लवडा कोमलच्या मांडीवर व पोटावर घुसळत होता व एक हात कोमलचा कुल्ला चिवळत होता तर डाव्या हाताने कोमलच्या गोळ्यांचे मोजमापन करत होता.

उंदीर नजरे आड होताच कोमलच्या जीवात जीव आला. पण त्याबरोबर तिला आता राजुचा तिच्या कुल्ल्यावर फिरणारा व आपल्या छातीवर बागडणाऱ्या राजुच्या हाताच्या वाढत्या दाबाचे व आपल्या मांडीवर रगडाणाऱ्या कडक व लांब उंदराचे अस्तित्वाचे भान आले. तशी कोमल धडपडत राजुपासुन वेगळी व्हायचा प्रयत्न करु लागली.

राजु अजुनही कोमलला चिकटुन होता व त्याचा लंड कोमलला टोचा मारत होता. त्याने कोमलचा हात धरुन ठेवला व तिला हलकेच आपल्याकडे खेचले.

"राजु तु हे काय चालवले आहेस?" कोमलने रागाने विचारले.

"सॉरी" राजुने नाटकी स्टाइलने माफी मागुन टाकली. त्यावर काहीच न बोलता कोमल फणफणत आजी व पिंकी झोपल्या होत्या त्या खोलीन गेली. राजु मग बराच वेळ त्याच्या ताठलेल्या लंडाला कुरवाळत उभा राहिला व शेवटी न राहवुन बाथरुममध्ये लवड्यावर हातगाडी चालवायला गेला.

राजु परत आजीच्या खोलीत आला तेव्हा कोमलचा पत्ता नव्हता पण पिंकी आजीजवळ झोपली होती. राजु मग हॉलमध्ये जावुन बसला. त्याला खात्री होती कोमल परत येणार कारण तिने बाहेरचे दार नुसते ओढुन घेतले होते.
राजु दचकुन उठला व समोरच्या घड्याळाकडे पाहीले. दोन वाजत आले होते. म्हणजे आजीला उठायला अजुन २ तास तरी अवकाश होता. तो आजीच्या खोलीत डोकावला. आजी झोपली होती, पण कोमलचा पत्ता नव्हता.

पिंकी तर अजुनही इथेच होती. राजुच्या मनात प्रश्नचिन्ह उभे राहीले. तो परत हॉलमध्ये आला. बाहेरचे दार आता बंद होते. म्हणजे?? तो धावतच दुसऱ्या बेडरुममध्ये गेला. कोमल बाल्कनीच्या दारात उभी होती. राजु तिच्या मागे उभा राहिला.

"कोमल तुला मी काय केलेले ते तुला आवडले नसेल तर आय ऍम सॉरी" राजु पुटपुटला. कोमलने मागे वळुन पाहीले. "पण आवडले असेल तर?" कोमलने घोगऱ्या आवजात विचारले.

राजु उडालाच! त्याला कळेना काय उत्तर द्यावे. तसा कोमलने त्याच्या हातावर तिचा हात ठेवला. तिच्या तळव्याचा कंप व तिला फुटलेला घाम त्याला जाणवला.

राजुने तिला आपल्याकडे ओढले व मिठीत घेतले. "अस काय करतोस ? कोणी पाहीले तर ?"

"मग आत चल" अस म्हणुन त्याने तिला आत खेचले.

राजुने आजुनपर्यंत वाचलेल्या कामसाहित्याची मनातल्या मनात स्मरण केले. पण पुढची स्टेप घ्यायच्या आधी आजीचा कानोसा घेणे जरुर होते. राजु आजीच्या बेडरुममध्ये डोकावला. आजी ढाराढुर झोपली होती. घड्याळात २ वाजुन पाच मिनिटे झाली होते.

राजु परत त्याच्या खोलीत आला. कोमल त्याच्या आभ्यासाच्या टेबलाजवळ उभी होती. राजुने कोमलच्या कंबरेवर हळुच हात ठेवले. कोमलने एक लुज जेंट शर्ट व खाली पेटीकोट घातला होता.

कोमलने राजुचे कंबरेवरचे हात आपल्या हातात पकडुन आपल्या पोटावर आणले. त्यामुळे राजु कोमलच्या अंगावर खेचला गेला. तिचे गुबगुबीत कुल्ले राजुच्या अर्धवट उठणाऱ्या लंडावर टेकले. तसा राजु मागे सरकला. पण राजुचे हात खेचुन कोमलने आपली गांड अजुनही मागे केली.

राजुला वाटले कि त्याला ग्रिन सिग्नलच मिळाला व राजुने आपला एक हात पोटावरुन वर सरकवत तिच्या बॉलवर आणला. कोमलने लटका विरोध करायचा प्रयत्न केला पण तसे कराताना राजुचा राजुचा कडक झालेला बाबुराव कोमलच्या नितंबावर रगडला गेला.

कोमलने आपल्या स्तनावर फिरु पहाणारा राजुचा हात सोडुन दिला. राजु जोमाने कोमलचा बॉल तिच्या शर्ट व ब्रेसियरवरुन कुरवाळु लागला. दुसऱ्या हाताने राजु कोमलच्या पोटावर मानेवर गोंजारु लागला.

कोमल आता सुस्कारे सोडायला लागली व आपले अंग राजुच्या अंगावर घासु लागली. राजुने मागुन तिचा कान चावला. "आईग.." करत कोमल शहारली व आपल्या छातीवर बागडणारा राजुचा हात दाबला.

राजु आता कोमलचे दोन्ही स्तन आळीपाळीने कुस्करु लागला. तिच्या जाड्या शर्टातुनही कोमलच्या कबुतरांच्या चोची राजुच्या हाताना टोचु लागल्या. राजु आळीपाळीने दोन्ही गुंड्या बोटानी फिरवु लागला. हे सुख असह्य होवुन कोमलचे पाय लटपटु लागले.

मानेवर फिरणरा राजुचा हात कोमलच्या शर्टात शिरला व राजुची थरथरणारी बोटे शर्टाच्या आत ब्रेसियरची सीमा पार करुन कोमलच्या कबुतराला गोंजारु लागली. मग थोडा जोर लावुन त्याने कोमलच्या निप्पलचे शिखर गाठले व निप्पल चिमटीत पकडुन पिरगळले. आता कोमलच्या सुखाचा कडेकोट होत होता. ती तड्फडायला लागली व तिचे शरीर ताठ होवुन ती झडली.

अर्थात राजुला ह्याचा काहीच क्ल्यु नव्हता. त्याला कळेना कि कोमलचे अंग एकदम गळपटले का. राजुने जवळजवळ उचलुन कोमलला त्याच्या सिंगल बेडवर नेले व विचारले "कोमल तुला काय होतय का?"

कोमलचे डोळे बंद होते पण राजुला तिच्या चेहऱ्यावर अतिव सुखाचा भाव दिसला. तसे त्याने कोमलच्या ओंठावर त्याचे ओंठ टेकवले. इंग्लिश पिक्चरमध्ये बघितल्याप्रमाणे त्याने आपल्या ओंठाने कोमलचा खालचा ओंठ पकडला व आपली जिभ कोमलच्या ओंठावरुन फिरवली.

कोमलने डोळे उघडुन राजुकडे पाहिले व ती लाजली. पण लगेचच राजुचे डोके पकडुन त्याचे जोरदार चुंबन घेतले. तसा राजुने पण तिच्यावर चुंबनाचा वर्षाव केला.

तिच्या मानेचे मुके धेत घेत तो तिच्या वक्षावर किस करु लागला. एका हाताने त्याने कोमलच्या शर्टची बटणे काढायला सुरवात केली. तशी कोमल कुजबुजली, "आजी जागी झाली का पाहुन ये.

आजी आजुन शांत झोपली होती व रोजच्या अनुभवावरुन राजुला माहीत होते कि अजुन तासभर तरी ती उठणार नाही.

तो परत आला तेव्हा कोमल तशीच डोळे बंद करुन पहुडलेली होती. राजुची चाहुल लागताच ती डोळे उघडुन ती राजुकडे पाहु लागली. तिच्या शर्टची वरची दोन बटने उघडी होती व शर्ट तिच्या पोटावर वर सरकला होता व तिची बेंबी दिसत होती व पेटीकोट मांड्यापर्यंत वर चढला होता.

हे मनोरम दृष्य पाहुन राजुच्या लवडायाने पुर्णपणे काटकोनात उभे राहुन त्याच्या बर्मुडातुन सलामी दिली. कोमलने हे पहातच ती लाजली व तिने आपले डोळे बंद केले.

राजुचा हा आयुष्यातला पहिलाच ’काम प्रसंग’ होता पण आभ्यासाच्या नावाने चोरुन वाचलेली इतकी चावट गोष्टींची पुस्तके आता त्याच्या ’कामा’ला येत होती!!

राजु कोमलच्या जवळ आला तसे डोळे न उधडता कोमलने त्याला भिंतीकडे सरकुन जागा केली. राजुने वेळ न घालवता वाकुन कोमलच्या किंचीत दर्शन देणाऱ्या वक्षाच्या वरिल भागावर ओंठ ठेवले. कोमलने एक हुंकार दिला.

राजुने ब्रेसियरच्या कडेपर्यंत उघड्या पडलेल्या भागावर जीभ फिरवली. तशी कोमल थरारली व तिने राजुला कवेत घट्ट धरले व राजुचा चेहरा आपल्या गोळ्यांवर दाबला.

राजुने एका हाताने कोमलची मांडी पेटीकोटवरुनच कुरवाळु लागला. तशी राजुचा डोक्यावरील आपला हात तिने सोडुन दिला व आपल्या मांडीवर फिरणाऱ्या राजुच्या हातावर नेवुन घट्ट दाबुन धरला.

राजुने आपला हल्ला आता कोमलच्या कडक झालेल्या स्तनांवर चढवला व त्याने तिच्या कपड्यावरुनच एक स्तन आपल्या ओंठानी पकडला व दांतानी हळुच चावला.

ह्या दुहेरी हल्ल्याने कोमल हैराण झाली व तिने थरथरत्या क्षीण आवाजात "ए नको न" अस काहीस बोलली पण विरोध काही केला नाही.

राजुने तिच्या दुसऱ्या बॉलवर आपले ओंठ टेकवले तसे कोमलने आवेगाने परत कवटाळले. राजुच्या ओंठाना कोमलच्या ताठरलेला निप्पाल लागत होता. त्याने आपल्या दातात हळुच दाबला.

परत कोमलने राजुचा चेहरा आपल्या दोन्ही हातानी धरला व ती त्याच्या केसावर चुंबनाचा वर्षाव करु लागली. राजुला आता टारगेट सापडले होते. आपल्या ओंठात पकडलेले कोमलचे बोंड तो तिच्या कपड्यावरुनच चोखु लागला. राजुच्या लाळेने तिचा शर्ट ओला होवु लागला. राजुने आपले तोंड उंचावुन तिच्या कानाचे एक चुंबन घेतले.

"ए मला बघु दे न" राजुने कोमलचा शर्ट एका बाजुला करत तिच्या कानात कुजबुजला. "काय?" कोमलने आपल्याला न कळल्याचा आभास कला.

"तुझे बॉल्स" अस म्हणुन राजुने तिच्या दुसऱ्या कबुतरावर भिडला.

"मला लाज वाटते" कोमल उत्तरली.

’तु डोळे बंद कर" राजुने आयडिया मारली.

"चल चावट" कोमलने त्याच्या डोक्यावर एक चापट मारली.

"बर तर नको तर नको" अस म्हणत राजुने उठण्याचे नाटक केले. कोमलने त्याला क्षणभर आपल्या अंगावर ओढले. पण लगेच त्याला ढकलुन कोमलने "आजीला एकदा बघुन ये" अशी आज्ञा दिली.

घड्याळात तीन वाजत आले होते. आजी मंद सुरात घोरत होती. राजु धावतच परत आला.

कोमल आजुनही अस्तव्यस्त पडली होती. राजुने अजुन पर्यंतच्या आयुष्यात पाहिलेल्या ब्लु फिल्म मधील बायकांपेक्षा ती राजुला सेक्सी दिसत होती.

राजु आपला लवड्यामुळे झालेला तंबु सरळ करत कोमलच्या बाजुला जावुन बसला व सरळ दोन्ही हातानी कोमलचे कडक बुब्स समोरुन कुस्करु लागला. "स्स्स...स दुखत न" कोमल बोलली.

राजुने सरळ तिच्या बोंड्या बोटात घरुन चुरगळल्या. "ए अस नको.... करु न......न" कोमल कळवळली. "मग आधी मला तुझ्या पीप्या दाखव". राजुला पट्कन शब्द सुचला नाही. कोमलच्या डोळ्यात पहात राजु तिच्या शर्टची बटणे काढु लागला.

"हळु बटन तोडशील" म्हणत कोमल थोडी उठुन बसली. राजुने तिच्या पाठीवरील तिचा शर्ट वर करत सरळ तिच्या ब्राच्या हुकवर हात नेला व थरथरत्या बोटांनी हुक्स काढायचा प्रयन करु लागला.

पण आयुश्यात कधी न केलेले ते काम त्याला जमेना. तिच्या मोठ्ठाल्या गोळ्याच्या ब्रावरील प्रेशरमुळे ब्राच्या पट्ट्याचे हुक्स त्याला सोडता येईना.

कोमलला हसु फुटले. हसतच हात मागे नेवुन तिने हुक्स मोकळे केले व ती परत बेडवर टेकली. आता राजु तिच्या अर्ध्यापर्यंत उघड्या शर्टातुन दिसणाऱ्या तिच्या ब्रामध्ये कैद होवुन पडलेल्या स्तनांकडे पहत राहीला.

क्रीम रंगाच्या ब्रातुन डोकावत मुक्ति पावायला आतुर झालेले त्या दोन टेकड्या राजुला खुणावत होत्या. एक क्षणभर त्याला कळेना की ब्रा वर करावी तिला की खाली ओढावी. कोमलला त्याचा हा गोंधळ कळला. परत किंचीत स्मितहास्य करत कोमलने ब्रा तिच्या बोटाने स्तनावरुन वर ढकलली व स्तन उघडे करत राजुला रस्ता दाखवला.

राजुच्या छातीत मुंबई ते पुणे धवणाऱ्या सर्व गाड्या एकच वेळी धावु लागल्या. राजुला भिती वाटायला लागली की त्याच्या धडधडणाऱ्या ह्र्‌दयाचा आवाज त्याच्या बहिऱ्या आजीला पण एकायला जाईल की काय.

राजुने मग एक मोठा श्वास घेवुन तिच्या ब्रा वर केला. पोर्णिमेच्या पुर्ण चंद्राचे जणु त्याला दर्शन घडले. पहिला ब्रातुन एक स्तन मुक्त झाला. उघडे केलेल ते वैभव डोळ्यात साठवत मग त्याने तिचा दुसरा स्तन बाहेर काढला.

राजु आयुष्यात प्रथमच एका स्त्रीचे अर्धनग्न रुप पहात होता. कोमलच्या त्या खुल्या झालेल्या खजिन्याने राजुचे डोळे दिपले. गव्हाळी वर्णाच्या कोमलची फिकट रंगाची स्तनाग्रे राजुला गुलाबाच्या कळ्यांसारखी भासली.

पाठीवर झोपलेल्या कोमलचे दोन्ही मोठ्ठे स्तन त्यांच्या वजनाने न ओघळता डौलात कोमलच्या श्वासाबरोबर वर खाली होत होते. कोमलचे रोंमांच उभे राहिले होते. कोमलचे किंचीत सुटलेल्या गोलाकार पोटावर तिची खोल गेलेली बेंबी राजुला प्रचंड सेक्सी दिसत होती.

डोळे भरुन कोमलचे सौंदर्य पाहील्यावर राजु तिचे दोन्ही स्तन त्याच्या ओंठानी स्पर्श करत सुटला. पोटभर चुंबुन झाल्यावर तो दोन्ही हाताने तिचे स्तन कुस्करत त्यांना किस करत, चाटत, चोखत, चावत तो तिच्यावर तुटुन पडला.

कोमल हास्यमुद्रेने राजुचा हावरटपणा न्याहळत ती तिच्या आयुष्यातल्या पहिल्या पुरुषाचे प्रेम अनुभवत होती. कोमलचे स्तन ह्या प्रचण्ड आवेगाने झालेल्या हल्ल्याने लालेलाल होवुन हुळहुळे झाले. पण तिला त्याची पर्वा नव्हती कारण सुखारितेकाने गेल्या काही मिनीटात ती २/३ वेळा झडली होती.

राजुचा एक हात व तोंड तिच्या स्तनांवर व्यस्त असतानाच राजुचा दुसरा हात कोमलच्या पोटावर आला व तिच्या बेंबीशी खेळु लागला. कोमल तिच्या सुखात इतकी डुंबली होती की ती काहीच हालचाल न करता डोळे बंद ठेवुन पडुन राहीली. राजु हात खाली जात तिच्या ओटीपोटावर फिरायला लागला तरी कोमलने त्याला आडवले नाही.

राजुचा हात कोमलच्या मांड्याच्या मध्ये पोचला व तिच्या योनीवर थबकला. कोमलने "राजु नाही" असे दबल्या आवाजात ओरडली व राजुचा हात तिने पकडायचा प्रयत्न केला. ह्या जोराजोरीत राजुचा हात तिच्या योनीवर छान रगडला जावु लागला.

कोमल डोळे बंद ठेवुनच हलक्या आवाजात कहणु लागली. राजु त्याच्या एका हाताने व तोंडाने आळीपाळीने कोमलच्या स्तनांशी खेळत होता तर त्याचा दुसरा हात कोमलच्या हातासकट पेटीकोटवरुन तिची फुगलेली योनी रगडत होता.

राजुने आपले कुल्ले उचलुन आपला फणा काढुन डोलणारा फण्या नागोबा कोमलच्या कुल्ल्यावर दाबला. मगाशीच एकदा हस्तमॅथुन केल्यामुळे आजुनपर्यंत बाबुराव मजेत टिकुन होते.

कोमलला राजुचा तिसऱ्या आघाडीवरुन झालेला हल्ला जाणवला होता व सुखाने ती अजुनपर्यंत अनेकदा झडली होती. कोमलच्या योनीवरील राजुच्या हाताला आता विरोध जाणवत नव्हता.

राजुने थोडा जोर लावताच कोमलने आपल्या मांड्या थोड्या फाकवल्या. राजुला मैदान थोडे मोकळे मिळताच राजुचा हात कोमलच्या योनीच्या फुगटव्यावर रेंगाळला होता. एखादा कॉम्पुटरचा माउस पकडावा तसे त्याने कोमलची पुची आपल्या तळव्यात पकडली. त्याच्या बोटाना तिची भेग जाणवत होती. तो आपले बोट कोमलच्या पुचीच्या भेगेवर चोळु लागला.

त्याने कोमलचे पाय आणखीन फाकवले. आता कोमल हातात व पायात त्राण नसल्यासरखी विरोध न करता डोळे बंद ठेवुन राजुला सगळे करु देत होती. कोमलच्या योनीवरचा आपला हात काढुन राजुने तिचा पोटावरचा उजवा हात आपल्या हातात घेवुन हळुच दाबला व आपल्या ताणलेल्या लंडावर ठेवला.

कोमलला ही नवीन जाणीव मेंदुपर्यंत पोचुन प्रोसेस होईपर्यंत कही क्षण जावे लागले. मग ती ती जाणीव होताच तिचे डोळे खडकन उघडले. राजुने तिला काहिच अवधी न देता तिचा हात तसाच आपल्या पुर्ण उत्तेजीत असलेल्या आपल्या दांडक्यावर धरुन ठेवला.

कोमल डोळे विस्फारत राजुकडे पाहत होती राहीली. परत डोळे बंद करुन हळु हळु राजुचा लंड कुरवाळु लागली.
तसा राजुने आपला हात उचलुन तिच्या मांडीपर्यंत नेला व उघड्या पडलेल्या तिच्या मांड्यावर ठेवला. कोमलच्या उबदार मांड्यावर राजुचा थंडगार हात फिरायला लागला.

कोमलच्या मेंदुत पोचलेल्या ही नवीन संवेदना रजिस्टर होताच परत कोमलने आपले डोळे किंचीत उघडुन परत बंद केले. पण राजुच्या लंडावरचा आपला हात आजीबात हलवला नाही. राजुने कोमलची डावी मांडी वर सरकवली तर उजवी मांडी आपल्याकडे खेचली.

आता नवीन गड काबीज करायला सरसावलेल्या आपल्या मर्द मराठ गड्याने मग हळुच कोमलच्या परकरात हात घातला मांडी कुरवाळत तो आपल्या टारगेटवर पोचला. त्याने कोमलच्या डबलरोटीसारख्या फुगलेल्या योनीवर आपला तळवा दाबला.

राजुला कोमलच्या कॉटन पॅंटीतुनही तिचे झाटाचा स्पर्श जाणवला. काही मिनीटे राजु हात तसाच स्थिर ठेवुन कोमलच्या गुप्तांगाची उब अनुभवत राहीला. कोमलचे योनी स्पंदत होती. कोमलही निपचीत पडुन सुस्कारे सोडत होती. तोंडातुन मोठा आवाज बाहेर पडु नये म्हणुन कोमलने तीचा डावा हात तोंडावर नेला.

राजुने कोमलच्या उरोजावरचा आपला हल्लाबोल आजुनही टिकवला होता व आळीपाळीने तो तिचे गोळे आईसक्रिमसारखे चोखत होता खात होता.

राजुने आपला हात कोमलच्या मांड्याच्या फटीत खाली सरकवला. कोमलच्या चड्डितुन डोकावणाऱ्या झाटांचा स्पर्श त्याला झाला. कोमलच्या मांड्यांमधे चड्डी राजुला ओलसर लागली.

कोमलला जाणवत होते की काहीतरी चुकीचे होत आहे आपण फार पुढे वाहवत जात आहोत, पण तिला इतके सुख मिळत होते की राजुला थांबवावे असे तिला अजिबात वाटले नाही. ती तिच्या तिनेच आपला हाताने बंद केलेल्या तोंडातुन ती सुखाचे हुंकार देत होती. राजु चड्डी वरुन कोमलची पुच्ची चोळुन आता पुढची चालीचा विचार करत होता.

त्याने एक बोट हळुच कोमलच्या चड्डीत सरकावले व कोमलच्या झाटांच्या जंगलात तो शिरला. कोमलच्या झाटा इतक्या दाट होत्या की त्याला फक्त केसांचा पुंजकाच लागत होता.

राजु बराच वेळ तिच्या झाटांशी खेळत होता. हळुच त्याला एक दरी व त्या दरीत एक जिवंत झरा मिळाला. त्या झऱ्यात ओले झालेले त्याचे बोट पटकन कोमलच्या पुच्चीतल्या दरीत गेले.

कोमलच्या मेंदुने एक नविन संवेदना ओळखली व तिचे डोळे सुखाच्या धुक्यातुन राजुवर रोखले गेले. पण तिने राजुला काहीच न बोलता सुखाचा एक दिर्घ हुंकार देवुन परत डोळे बंद केले.

राजुचे बोट कोमलच्या योनीची खोली व रुंदीची मोजमापे घेत होत. त्या बोटाने मदतीला आणखी कुमक मागवली. आता राजुची दोन बोटे कोमलच्या योनीत फिरु लागली.

कोमलचे हुंकार वाढु लागले. मोजमापन करणाऱ्या जोडीला एक शिखर सापडले. राजुने वाचलेल्या सगळ्या गोष्टीत हमखास येणारा "दाणा" राजुला सापडला. त्याने कोमलचा दाणा दोन बोटांमध्ये पकडला व फिरवु लागला.

राजुने आता त्याचा पुरा हात कोमलच्या चड्डीत सरकवला. बोटात व आंगठ्यात क्लिट पकडुन राजुने तो हलकेच दाबला.

त्यांचा लवगेम चालु झाल्यापसुन इतक्या वेळ झडल्यावरही राजुच्या ताब्यात तिचा दाणा पडताच "अंह्ह्ह्ह...अ...अ....." असे चीत्कार काढत कोमल फळफळा झडली. झडताना कोमलच्या हाततल्या राजुच्या लवड्यावरचा आपला ताबा सोडला नाही.

राजु बराच वेळ आपली बोटे कोमलच्या पुच्चित आतबाहेर करत राहीला. त्याची बोटे दमल्यावर त्याने काही क्षण असेच जावु दिले व आपला हात तिच्या पुच्चीच्या भेगेत तसाच ठेवला.

त्याचा हात तिच्या कामरसाने भिजला गेला. कोमलने डोळे उघडले व डोळ्यानेच राजुला आपल्या चड्डीतुन हात काढण्याची विंनतीवजा इशारा केला. राजुने कोमलच्या चड्डीतुन हात काढला.

पुच्चीरसाने चमकणाऱ्या आपल्या हाताचा वास घेतला व जिभेने चव घेतली. मग कोमलच्या डोळात डोळा घालत तिच्या पुच्चीरसाने भिजलेला आपला संपुर्ण हात चाटु लागला. कोमलचे डोळे परत विस्फारले पण ती काहीच न बोलता पडुन राहीली.

राजुचा छोटा राजु अजुनही कोमलच्या हातात होता. राजुच्या गोट्या ठणकायला लागल्या होत्या. त्याने कोमलच्या हातातुन आपल्या छोट्या राजुची सुटका करुन घेतली व मोठ्या कष्टाने हळु हळु चालत तो आजीच्या खोलीत डोकावला.

आजी झोपली होती पण आता वेळ खुपच कमी राहीला होता. राजु लंड हातात पकडुन कोमलसमोर आला. कोमलने आपले कपडे ठिकठाक केले होते व ती आता पलंगावर बसली होती. त्याच्या हातात पकडलेला ६ इंची बुल्ला धरुन कोमलसमोर फ़ुटभर अंतरावर उभा राहीला. कोमल लाजेने चुर होवुन तिरक्या डोळ्याने राजुच्या तंबुकडे पहात होती.

राजु कॅब्रे डांन्सच्या अविर्भावात आपला लंड पकडुन नाचत होता. नाचत नाचत त्याने कोमलचा हात पकडुन त्याने तिचा हात आपल्या दांडक्यावर ठेवला. कोमलने न लाजता राजुला लवडा हातात घेवुन दाबला.

राजुने तिचा हात काढला व बर्मुडा आतल्या फ़्रेन्चीसकट खाली खेचली व राजुच्या छोट्या राजुने ११० अंशात खडी सलामी दिली. मोकळा होताच राजुचा बाबुराव वर खाली होत मदमत्त हत्ती सारखा झुलु लागला.

तिच्या अगदी जवळ जात राजुने परत कोमलचा हात लवड्यावर ठेवला. राजुचा नग्न लवड्याच्या स्पर्शाने कोमल परत शहारली. कोमलने दुसरा हात पुढे करुन राजुची बर्मुडा व फ़्रेन्ची आणखीन खाली खेचली व राजुच्या दोन्ही गोट्या हातात घेतल्या.

राजु कोमलच्या अजुन जवळ सरकुन उभा राहीला. राजुचा लवडा कोमलच्या चेहऱ्यापासुन एक इंच अंतरावर होता. कोमल राजुच्या अवयवाचे सुक्ष्म निरिक्षण करत होती. राजुच्या शिश्नातुन प्रीकमचा एक थेंब चमकत होता. राजु कोमलच्या आणखीन जवळ सरकला. कोमलने राजुकडे पहात लवड्याच्या टोकाला जिभेने तो थेंब टिपला. आता सुखाचा हुंकार द्यायची राजुची पाळी होती.

राजुला जाणवले कि आता त्याचा बाब्या कधीही आचके देवु शकतो व गळु शकतो. त्याने कोमलला डोळ्यांनी विनंती केली व लवडा तिच्या ओठांवर फिरवीला. तसा कोमलने त्याचा लवड्याचा सुपडा चाटला. परत एकदा निरिक्षण करुन ती डोळे बंद करुन राजुचा लवडा आइसक्रिम कोनसारखा चाटु लागली व त्याच्या गोट्या कुरवाळु लागली.

राजु एकदम टोकावर पोचला होता. कोमलच्या एका स्तनावर आपला हात ठेवुन राजुने तिचे स्तनाग्र दाबताच त्याची तोफ उडाली. चपळाई करुन त्याने हतात तयार ठेवलेला रुमालाने लवडा झाकला व आयुष्यात गळला नसेल इतका रुमालावर गळला.

कोमल राजुचा लंड झटके थांबेपर्यंत धरुन होती व त्याची फडफड अनुभवत होती. आचके थांबताच तिने रुमाल सरकवला अजुनही कडक असलेल्या लंडोबाला आपल्या तोंडात घेतले व चाटुन पुसुन साफ केला. राजुची चड्डी व बर्मुडा वर सारकवली. राजु थकुन पलंगावर बसला व डोळे मिटुन पडला.
प्रकरण ४ थे

कोमल आजीच्या खोलीत मासिक वाचत बसली. थोड्या वेळेने आजी झोपेतुन उठली. कोमलने तिला चहा करायला मदत केली. राजुचा चहा घेवुन ती राजुकडे आली.

राजु झोपला होता. ती त्याचा चेहरा न्याहाळत बसली. कोमलची चाहुल लागुन राजुने मान वर करुन पाहीले. कोमलने चहाचा कप समोर केला. एका हाताने कप घेताना त्याने कोमलचा हात पकडला.

कोमलने डोळे मोठे करुन आजीच्या खोलीकडे बोट कले. "आजी देवळात जात आहे" कोमल कुजबुजली. तसे राजुने तिला मोठे स्माइल दिले व तोंडाचा चंबु करु दोन बोटांनी तिला एक फिल्मी किस दिले.

कोमल पिंकीला घेवुन तिच्या घरी गेली. आजी ४ वाजता देवळात किर्तनाला जायला बाहेर पडली. तिला यायला ७ वाजणार होते. राजु आजीला टाटा करायला बाल्कनीत उभी राहिला. ती कोपऱ्यापर्यंत पोचताच तो धावत बाहेरेच्या खोलीत जाउन तो कोमल परत यायची वाट पाहु लागला.

कोमल पिंकीला घेवुन परत आली. तिने आता शर्टवर एक पुढे बटणाचा स्वेटर घातला होता. राजुचा लंड कोमलला पाहुन परत कडक झाला व त्याच्या छातीतली धड्धड वाढली.

कोमलचा हात धरुन त्याने तिला त्याच्या पलंगावर बसवले. कोमलच्या कडेवर बसलेल्या पिंकीला आपल्याकडे घ्यायच्या बहाण्याने त्याने कोमलच्या पाठीवर हात ठेवला व पुठे झुकुन पिंकीची एक मोठी पप्पी घेतली. मग कोमलच्या डोळ्यात पहात त्याने आपले ओंठ कोमलच्या ओंठावर ठेवले.

राजुने दुसरा हात कोमलच्या स्तनावर हळुच नेला. कोमलने राजुच्या किसला प्रतिसाद देत आपले ओंठ उघडले. राजुने कोमलच्या दांतांवर जिभ फिरवली. कोमलनेही तिची जिभ राजुच्या जिभेला भिडवीली. बराच वेळ फ़्रेंच किसींग करुन दोघे परत दीर्घ श्वास घ्यायला वेगळे झाले.

कोमल राजुला हाताने थांब असा इशारा करत पिंकीला घेवुन उठली व तिला आजीच्या खोलीत घेवुन गेली. तिथे कपाटात ठेवलेली काही खेळणी तिने पिंकीच्या समोर ठेवुन तिला तिथे बसवले. पिंकी खेळण्यात रमली. एका मिनिटात कोमल राजुच्या खोलीत परत आली.

राजुने कोमलवर जणु झडप घातली व तिला मिठीत घेतले. परत ते किसिंग करत एकामेकाच्या सर्वांगावरुन हात फिरवु लागले.

राजुचा लवडा कोमलच्या पोटावर रुतला होता तर कोमलचे स्तन राजुच्या छातीवर सपाट झाले होते. राजुने आपला हात मागुन कोमलच्या लुज शर्टमधे स्रकवत तिच्या पाठीवर नेला. राजु तिच्या पोटाच्या वळीशी चाळा करत राहिला. राजुचा हात वर सरकला व तो उडालाच.

कारण त्याला कोमलच्या शर्टच्या आत ब्राचा पट्टा लागला नाही!! तिने शर्टाच्या आत ब्राच घातली नव्हती!!!

कोमलकडे राजुने मागे होत कोमलकडे पहाताच ति झकास लाजली व तिने चेहरा राजुच्या छातीवर लपवला. राजुने वेळ न गमावता हात पुढुन कोमलच्या स्तनांवरुन आळीपाळीने फिरवत तिची स्तनाग्रे चिमटीत पकडली.

राजुचा दुसरा हात कोमलच्या कुल्ल्यावर फिरत होता. त्या हाताने तो कोमलचा परकर वर सरकवु लागला. परकर पुरेसा वर होताच राजुचा हात कुठल्याही आडथळ्याविना सरळ कोमलच्या नग्न कुल्ल्यांना लागला. राजुने गेस केल्याप्रमाणे तिने निकर पण घातली नव्हती!

राजुने कोमलने दाखवलेल्या हुशरीबद्दल बक्षिसादाखल कोमलवर चुंबनाचा वर्षाव केला. राजुने कोमलचे कुल्ले सर्व बाजुने हाताळुन झाल्यावर त्याचे बोट कुल्ल्याच्या फटीत फिरु लागले.

कोमलच्या कुल्ल्यावरही केस होते. केसाशी थोडा वेळ खेळुन राजुने बोट आणखीन खाली घातले. त्याच्या बोटाला पुच्चीच्या पाकळ्याचा फुगीरपणा जाणवला. बोट थोडे आत रेटल्यावर त्याला ओलसरपणा जाणवला. तो बोट आतबाहेर करत तिला सुख देवु लागला. तीला मिळणाऱ्या या मजेने कोमलच्या तोंडातुन सुस्कारे सुटु लागले.

राजुने कोमलला पलंगावर बसवले. राजुने कोमलचा हात आपल्या लवड्यावर ठेवला. मग हात वर करुन तो कोमलच्या शर्टची बटणे काढायला झटु लागला. वरची चार बटणे काढताच त्याने कोमलचा शर्ट दोन्ही बाजुने फाकवुन कोमलची वरची दौलत उघडी केली. संत्र्याच्या आकाराच्या तिच्या स्तनांना डोळे भरुन पाहुन राजु थोडा वाकला व कोमलचे स्तन चोखु लागला.

कोमलच्या स्तनवर राजुचे डोळे व तोंड ताव मारत आसताना एका हाताने राजुने कोमलचा परकर पुर्ण वर सरकवला व कोमलला खालुन उघडी केली. राजुचे एक बोट अजुनही तिला चोदत होते.

"ए मला तुझी दाखवना" राजु बोलला. त्याचे बोटाचे वरखाली होत चोदणे चालुच होते.

"तुला बघायची असेल तर तुझी तुच बघ" कोमल लाजुन बोलली.

परवानगी मिळताच राजु उठुन थोडा खाली सरकला व तिच्या दोन पायांच्या मधे आला . त्याने पेटीकोट पोटापर्यंत वर केला. कोमलच्या मांड्या उघड्या केल्या.

तिच्या शरिराच्या मानाने कोमलचे पाय लांब होते. त्यामुळे मांड्या थोड्या जाड्या असुनही कोमलचे पाय व मांड्या राजुला आकर्षक दिसल्या. मांड्याच्यामध्ये काळ्या केसाचा भरगच्च पुंजका होता व त्याने कोमलाची योनी पुर्ण झाकली गेली होती.

कोमलने लाजुन परकर खाली करायचा प्रयत्न केला. राजुने तिच्या हातावर हळुच फटका मारला व परकर वर करत तिच्या योनीला उघडे केले. डोके जवळ नेत तो तिच्या योनीच्या अगदी काही इंचावर पोचला.

राजुच्या आयुष्यातली ती पहीली पुच्ची होती. डोळे भरभरुन राजु पहात तिच्या झाटांशी बोटाने खेळत राहीला. त्याने तिचे पाय फाकावले व दोन्ही हाताचे आंगठे योनीत सरकवले व योनी पाकळ्या वेगळ्या केल्या. आता गुलाबी रंगाची कामरसाने चमकणारी आतली त्वचा राजुला दिसत होती.

राजुने कोमलचे पाय आणखीन फाकवले व तो अजुन जवळ गेला. मगाशी आपल्या हातावर लागलेला कोमलचा योनीरस चाटताना आलेला तो परीचीत किंचीत उग्र वास त्याच्या नाकात भरला. न राहवुन राजुने आपले ओंठ तिच्या खालच्या ओंठावर टेकवले व किस घेत सुटला. त्याच्या ओठांच्या तिच्या पुच्चीच्या ओठावर होणाऱ्या स्पर्षामुळे होणारी कोमलची तगमग व वळवळ त्याला जाणवत होती.

मगाशी राजुने बोटांनी चेतवलेली तिची क्लिट उघडी झालेली त्याला खुणवत होती. राजुने जिभेचे टोक त्या छोट्या दाण्यावर टेकवली. त्या स्पर्शाने कोमल एकदम उत्तेजीत होवुन तिने आपले कुल्ले वर उचलुन राजुच्या तोंडावर घट्ट रेटली व मांड्यांचा विळखा राजुच्या मानेला घातला व राजुला गुदमरुन टाकले.

राजुने जिभ कोमलच्या पुच्चीच्या भोकात आतपर्यंत घातली व तो तिची पुच्ची चाटु लागला. क्लिटला जिभेने त्याने छेडताच कोमलचे बंध सुटले व राजुच्या तोंडात तिचा कामसलीलाच्या पहिल्या धारेचा प्रसाद मिळाला.

राजुने कोमलची क्लिट दातात पकडुन हळुच चावली, तशी कोमल जोरात आपल्या हाताने तोंड दाबत चित्कारली. राजुच्या गळ्यावरचा कोमलच्या पायाचा विळखा अजुनच घट्ट झाला.

कोमल बहुदा इतक्या सुखाने बेहोशच झाली व शरीराला आचके देत "राज.............उउउउउ" अस काहीसा आवज काढत निपचीत पडुन राहिली.

राजु परत वर आला व कोमलचे गोळे हातानी कुसकरत स्तनाग्रे चिमटीत फिरवायला लागला. कोमलचे ओंठ आपल्या दातात धरुन तो तिची जिभ चोखु लागला.

राजु आता कोमलच्या अंगावर चढला होता. त्यामुळे त्याचा सहा इंची लवडा कोमलच्या पुच्चीवर रगडला जात होता. राजुच्या बर्मुडातुनही जाणवणारी लवड्याची उब व ताठरता कोमलला जाणवली व तिने डोळे उघडले. तिला माहित होते आता पुढची पायरी कोणती आहे व आता मागे जायची तिची इच्छा नव्हती.

तिने राजुचे कुल्ले दाबुन धरले व लडाचा तिच्या पुच्चीवर होणारे घर्षण तिला हवे हवेसे वाटु लागले. मासीकात अनेकदा चोरुन वाचलेल्या झवाझवीची वर्णनांची तिने परतपरत पारायणे केली होती पण हा खेळ इतका उत्कट असेल असे तिला वाटले नव्हते.

तिने हात घालुन राजुचा लंड पकडला व नेम धरुन ती आपल्या पुच्चीवर घासु लागली.

राजुने तिला थांबवीले. "कोमल आपण शेवटपर्यंत जायचे काय?". कोमलने होकारार्थी मान हलवली. "पण तुला बाळ झाले तर?" राजुचा हा प्रश्न एकुन तिला कळेना काय उत्तर द्यावे. ती निराश झाली कारण कोमलने हा विचार केलाच नव्हता.

"मग?" तिने वैतागुन विचारले. राजुने तिच्या कानात उपाय सांगीतला. "राजु काही गड्बड तर होणार नाही?" राजुने परत फिल्मी डायलॉग मारला "मै हु ना".

तो कोमलच्या शरीरावरुन उठला. त्याने आत जावुन एक जुना टॉवेल आणला. इतकी चावट पुस्तके वाचुन त्याला माहीत होते कुंवाऱ्या मुलीना पहिल्या चुदाइनंतर काय होते. त्याने कोमलला उठायला सांगीतले. मग त्याने तो टॉवेल पलंगावर पसरला. उभ्या असलेल्या कोमलला परत मिठीत घेवुन तिच्यावर किसेसचा भडीमार केला.

राजुने परत कोमलला वेगळे केले व झटापट आपला टिशर्ट व चड्या काढुन पुर्ण नागडा झाला. कोमल तोंडाचा आ वासुन त्याच्या नागड्या शरिराकडे विशेशतः त्याचा लवडा व गोट्या पहात राहिली.

राजुने कोमलच्या शर्टची उरलेली बटने काढायला सुर्वात केली व शर्ट व स्वेटर तिच्या हातातुन काढुन टाकला. कोमलच्या गळ्यातल्या सोन्याच्या साखळीशिवाय आता तिच्या वरच्या अंगावर काहिच नव्हते. राजु बावचळल्यासरख तिच्या या रुपाकडे पहातच राहिला.

राजु तिचा राहिलेला कपडा कढायचा प्रयत्न करु लागला. पण कोमलच्या पेटीकोटाची नाडी त्याला मिळेना. कोमल डोळे बंद करुन धुंदीत उभी होती. परत त्याने प्रयत्नपुर्वक नाडी सोडवली व परकर कुल्ल्यांवरुन हळुहळु खेचत फिरवत खाली ओघळु दिला.

राजु आवक होवुन कोमलचे सौंदर्य डोळे फाडुन पहात राहिला. कोमल थोडी वाकली व तिने राजुचा खुंटा पकडुन आपला हात त्यावर दाबुन पुढे मागे चालवला. राजुने हा क्लु घेवुन तिच्या पुच्चीत मधले बोट सरकवले व तो तिला उंगली करायला लागला.

मग कोमल गुडघ्यावर बसली व तिने राजुला पलंगावर बसवले व राजुच्या लवड्याजवळ आपले तोंड नेले. एकदा किस करुन राजुचा लवड्याचा सुपडा कोमलने तोंडात घेतला व त्यावर जिभ फिरवत चाटु व चोखु लागली. राजु कोमलचे स्तन दोन हातात भरुन कुसकरु लागला.

काही वेळ त्यांचा हा खेळ चालु राहिला. मग राजुने कोमलला पलंगावर बसवले व झोपवले. तो तिच्या पायच्या मध्ये आला. कोमलने आपले पाय फाकवुन त्याला जागा करुन दिली. दोन हातावर शरिराचा भार देत राजुने आपला लंड कोमलच्या पुच्चीच्या भेगेवर आणला. उजव्या कोपरावर शरीर पेलत डाव्या हातात लंड धरुन हळु हळु कोमलच्या पुच्चीवर रगडु लागला.

कोमल सुखाचे हुंकार देवु लागली. मग तिने डोळे उघडले व आपली गांड उंचावत राजुला साथ देवु लागली. राजुच्या गोट्याना कोमलच्या झाटांचा स्पर्श जाणवत होता. राजुला आपला लवडा नक्की कोठे घालावा हे समजत नव्ह्ते.

कोमलला राजुचा प्रॉब्लेम कळला. कोमलने तिचा हात राजुच्या लवड्यावर आणला व त्याला गाइड केले. कोमलच्या बुळबुळीत भेगेत राजुचा लवडा किंचीत आत गेला.

राजु हळु हळु पुढे मागे होवु लागला. कोमलली पुच्ची खुपच टाइट होती. त्यामुळे राजुचा लवडा जेमतेम एक इंच आत जात होता. राजुने थोडा जोर लावताच कोमल कळवळली. राजुला तिच्या डोळ्यात पाणी आलेले दिसले. मग राजु थांबला. आत त्याला कळत नव्हते काय करावे.

कोमलने राजुला "राजु एक मिनीट उठ" असे म्हणत तिच्या अंगावरुन उठायला सांगीतले. राजु नाइलाजाने उठला. कोमलने त्याला पलंगावर झोपायचा इशारा केला. राजुल कळेना कोमलला काय करायचे आहे. तरी त्याने कोमलचे ऐकले व तो पलंगावर पडला.

कोमलने आपला पाय राजुच्या अंगावरुन पलीकडे टाकला व साइकलच्या सिट्वर बसल्यासरखी ती राजुच्या लवड्यावर बसली. तिने एका साइडला झुकुन राजुचा ताणलेला लवडा आपल्या योनीद्वारावर घासायला लागली. राजुला हा अनुभव नवा होता. मुटल्या मारताना त्याला अशी मजा कधीच आली नव्हती.

आता राजुचा सोटा भोकात योग्य रितीने रुतला होता. कोमल आता खाली वर करु लागली. कोमलचे गोल गरगरीत गोळे हिंदोळे खात होते. राजुने मान वर करुन जिभ लांब करुन कोमलचे निप्पल चाटले मग दोन हातात दोन स्तन पकडुन तिचे स्तनाग्र कुस्करले. परत मान उंचावुन कोमलचे एक स्तनाग्र दात पकडले व चावले. कोमल "राजु...उ..........उ !!!’ करत झडली.

राजुच्या लवड्यला प्रथमच तिच्या पुच्चीच्या स्नायुंची कंपने जाणवली. कोमलच्या हालचाली थोड्या मंदावल्या. राजु आळीपाळीने तिचे निपल चोखत राहीला.

जसा जसा राजुचा लवडा ती आत घेत होती, कोमलला प्रचंड वेदना जाणवत होत्या पण तिला मिळणारे सुख दुखाःपेक्षा जास्त असावे. त्यामुळे ती दाताने ओंठ दाबत राजुचा लवडा तिच्या आत घेत होती. राजुचा लवडा आर्धाअधिक कोमलच्या कमळसारख्या फुललेल्या योनीत शिरला, कोमलला एक तिव्र कळ आली व ती त्या वेदनेने विव्हळली.

राजुने तिचे कुल्ले दाबुन तिला जवळ खेचले व आपला लवडा कोमलच्या योनीत अजुन खोल घुसवला. तिव्र वेदनेने कोमलच्या डोळ्यातुन आश्रुंची धार लागली पण डोळे मिटुन वेदना सहन करत परत वर खाली करत राजुला झवायला लागली. राजुचे कुल्ले तिच्याबरोबर वर खाली होत तिला साथ देत होता.

आता राजुचा लवडा पुर्ण आत गेला. कोमलच्या वेदना कमी झाल्या असव्या. त्यामुळे तिही ’आ आउ..... आई.......ग...’ करत मजा घेवु लागली. कोमलच्या पुच्चीतुन बाहेर येताच "पचाक..पचाक" आवज येत होता. कोमलची योनी राजुला आता ओली लागत होती.

राजुवर आरुढ झालेल्या कोमलचा काही मिनीटातच सुखाचा कडेलोट झाला व तिचा धबधबा फुटला. पुर्णपणे गलीतगात्र होवुन ती राजुवर कोसळली. कोमलच्या पुच्चीने राजुचा लवडा पकडुन ठेवला होता व कोमलच्या पुच्चीतल्या स्नायुंच्या आकुंचनाने राजुचा लवडा जणु पिळला जात होता.

त्या सुखाच्या अनुभुती अवर्णनीय होती. त्याला कळले की तो आता गळणार. तसे त्याने लवडा बाहेर काढत कोमलला हळुच भिंतीच्या बाजुला ढकलले व त्याने आपला लवडा हातात पकडुन पलंगावरुन उठला. मगशी उशीच्या खाली ठेवलेला रुमाल उचलुन तो त्याने लवड्यावर दाबला व बराच वेळ गळत राहीला.

त्याने खाली बघीतले तर लवडा पुसलेला रुमाल रक्ताने माखला होता व त्याच्या लवड्यावरही रक्त लागले होते. त्याने वळुन कोमलकडे पाहिले. कोमल अजुन झोपली होती. कोमलचा हात तिच्या डोळ्यावर होता व दुसरा हात तिने छातीवर ठेवला होता.

राजुने खाली पाहीले. कोमलच्या योनीवरच्या झाटांना रक्त होते. त्याने कोमलला हालवले व आपल्या हातातला रुमाल दाखवला. तशी तिही चमकली व तिच्या डोक्यात प्रकाश पडला.

तिने उठुन पाहीले. तिच्या अंगाखाली राजुने टाकलेला टॉवेल स्वछः होता. वाकुन राजुने हातातल्या रुमालाने तिची चुत पुसली. कोमलने राजुच्या हातातुन रुमाल घेतला व आपल्या पुचीला पुसायचा प्रयत्न करु लागली.

मग ती उठली, पेटीकोट डोक्यावरुन घातला, नाडीची गाठ मारुन शर्ट अंगावर चढवला, बटने लावली व राजुचा रुमाल उचलुन ती बाथरुममधे गेली. राजुनेही आपले कपडे घातले व तो आजीच्या खोलीत गेला. पिंकी एक खेळणे हातात घरुन शांत झोपली होती.

मग पलंगावर रेलुन तो कोमलची वाट पाहु लागला. कोमल आली. काहीही न बोलता तिने राजुची पपी घेतली व पिंकीला घेवुन ती घरी निघुन गेली.

राजु पुण्याला ३ महीने राहिला. रविवार व महिन्यातले काही दिवस सोडुन कोमल व तो रोज झवायचे. बहुदा राजुच्या खोलीत. कधी कोमलच्या घरी. दोन तिन वेळा त्यांच्या खेळात कोमलची एक मैत्रिणही सामील झाली व एकदा तर कोमलची कुमुदभाबी!

पण ती कहाणी परत कधी तरी.


..........समाप्त...........